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1. जैनबालगुटका, प्रथम भाग |
समता भाव की जगह तीन काल सामायिक करना कहते हैं सो यह उनकी गलती है. ""सामायिक वारह व्रत में आचुकी है देखो चार शिक्षा व्रत का पहला भेद और ११ : प्रतिमा में तीसरी प्रतिमा इस लिये जो मूल गाथा में ऐसा पाठ है : (गुणमयतक समपठिमा) सो उस से आशय समता भाव ही है |
श्रावक के ८ मूलगुण । ५ उदंवर | ३ मकार ||
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इन आठ मूलका त्याग यानि न खाना तिलका नाम ८ मूल गुणः का पालना हैं इनके नाम भागे २२ अभश्य में लिखे हैं ।
१२ व्रत ।
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५ अणुव्रत, ३ गुणवत, ४ शिक्षाबत ॥
५ अणुव्रत ।
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.१ अहिंसा अणुव्रत, २ सत्याणुव्रत, ३ परस्त्रीत्याग अणुव्रत ४ अचौर्य (चोरी त्याग) अणुव्रत, ५ परिग्रहपरिमाण अणुव्रत ॥
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३ गुणव्रत ।
१ दिगनत, २ देशव्रत, ३ अनर्थदंड त्याग ॥ ४ शिक्षाव्रत ।
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सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथि संविभाग, भोगोपभोग परिमाण
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१२ तप ।
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१ अनशन, २ ऊनोदर, ३ व्रत परिसंख्यान, ४ रसपरित्याग, ५ विशिय्यासन, ६ कायक्लेश, यह छे प्रकार का वाह्य तप
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७ प्रायश्चित्तं, ८ पांच प्रकार का विनय ९ वैयावृत्य करना,
१० स्वाध्याय करना, ११ व्युत्सर्ग (शरीर से ममत्व, छोड़ना) १२ ।
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चार प्रकारका ध्यान करना । यह छे प्रकार का अन्तरंग तप है ॥
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