________________
जनयालगुटका प्रथम भाग।
अथ ८कर्म का वर्णन। १ कर्म क्या चीज है इस जीव का कर्तव्य । २ कर्म कितनी प्रकार के हैं कर्म ८ प्रकार के हैं चार धाति चार अधाति । ३ चारघाति कर्मफेक्या नामह शानावरण, दर्शनावरण, अंतराय, मोहनीय । ४ चार मघाति कर्म के क्या नाम हैं । १ आयु, २ नाम, ३ गोत्र,४ वेदनीय । ५घाति कर्म किसको कहते हैं। जो आत्माके स्वभावको घाते (कमजोरकरें)।
मघाति कर्म किस को कहते हैं। जो आत्मा के स्वभाव को कमजोर तो नहीं करता परंतु दुख सुख का कारण बनाये है।
अथ आठों कम्मों का कर्तव्य।
१ज्ञानावरण कर्मका कर्तव्य। पहले कर्म का नाम ज्ञानावरण है इस का स्वभाव पड़दे समान है इस का कर्तव्य यह जीव के सम्याज्ञान को आछादित करे है (ढके हैं)
२ दर्शनावरण कर्म का कर्तव्य । दूसरे कर्म का नाम दर्शनावरण है इस का स्वभाव परवान समान है आस्मा को अपने निज स्वरूप का.दर्शन न होने दे ॥
३अंतराय कर्म का कर्तव्य। . तीसरे कर्मका नाम अंतराय है इसका स्वभाव भंडारी समान है यह आत्मा को लाम में मंतराय करे यानि विघ्न डाले।
मोहनीय कर्म का कर्तव्य। चौथे कर्मका नाम मोहनीय है इसका स्वभाव मदिरा समानहै यह मात्मा कोमरम हो उपजावे उसको अपने शान दर्शनमय निज स्वभाव का ठोक सरधान न होने दे।
५ आय कर्म का कर्तव्य। . पांचवे कर्म का नाम आय है इस का स्वभाव महादृढ़बेड़ी समान है. यह जीव को एक खास मियाद तक भवरूप चंदो खाने में राखे है।