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जैनथाल गुटका प्रथम भाग।
.. ३ तीन लोक1 अलौकाकाश के बीच में तीन बातवलो कर वेष्टित यह तीन, लोक तिष्ठे है ऊई (ऊपर का) लोक मध्य (बीचका) लोक,पाताल (नीचरला) लोक, यह तीन लोक नीचे से ७ राजू चौड़े ७ राजू लंबे हैं ऊपरसे एक राजू चौड़े एक राजू लंबे हैं बीच में से कहीं घटता हुवा कहीं से बढ़ता हुचा जिस प्रकार मनुष्य अपने दोनों हाथ कटनी पर रखकर पैर छीदे करके खड़ा होजाये इस शकल में नीचे से ऊपर तक तीनों लोक १४ राज ऊंचे हैं अगर चौड़ाई लम्बाई और ऊंचाई को आपस में जरब देकर इनका रकवा निकाला जावे तो पैमायश मैं यह तीनों लोक ३४३ मुकाव राजू हैं मुकाव उस को कहतेहैं जिसके छहों पासे एकसां हो अर्थात् यदि इस लोकके एक राजू चौड़े एक राज लंबे एकहाऊंचं ऐसे खंड बनायेजावे तो तोन लोककोकुल पैमायश३४३राजूहै।
अथ मध्य लोक। इस मध्य लोक में असंख्याते द्वीप, समुद्र हैं उनके बीच लवण समुद्र कर वेढा लक्ष योजन प्रमाण यह जम्बू द्वीप है इस जम्बू द्वोप के मध्य लक्ष योजन ऊंचा सुमेरु पर्वत है, यह सुमेरु पर्वत एक हजार योजन तो पृथ्वी में जड़ है और ९९ हजार योजन ऊंचा है सुमेरु पर्वत और सौधर्म स्वर्ग के बीच में एक वाल की अणी मात्र अंतर (फासला ) है हम जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में रहते हैं।
अथ काल चक्र का वर्णन । एक कल्प २० कोटा कोटि सागर का होवे है एक कल्प काल के दो हिस्से होय हैं प्रथम का नाम अवसर्पणो काल है यह १० कोटा कोटि सागरं का होय है दूसरे का नाम उत्सर्पणा काल है यह भी १० कोटा कोटि लागर का होय है, जव अवसर्पणी काल का प्रारंभ होय है उस में पहले प्रथम काल फिर दूसरा तीसरा चौथा पांचवा छठा प्रवरते हैं छठे के पीछे फिर उत्सर्पणी काल का प्रारम्भ होय है उसमें उलटा परिवर्तन होय है । अर्थात् पहले छठा काल बीते है फिर पांचवां चौथा तीसरा दसरा पहिला प्रवरते हैं प्रथम के पोछे प्रथम और छठेके पीछे छठाकाल माघे है इस प्रकार अवसर्पणी काल के पीछे उत्सर्पणी काल मावे है और उत्सर्पणी काल 'के पीछे अवसर्पणी काल आवे है ऐसे ही सदैव से पलटना होती चली आवे है और सदैव तक होतो हुई चली जावेगी । जितने भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र हैं इन ही में यह छै काल की प्रवृति होय है। दूसरे द्वीप महाविदेह भोग भूमि आदि क्षेत्रों में तथा स्वग नरकादिक हैं उनमें कहीं भी इन छै काल की प्रवृति नहीं उनमें सदा एक ही रीति रहे है मायु कायादिक घट बढेन देव लोक और 'उत्कष्ट भोग भूमि में