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जैनवालगुटका प्रथम भाग ११ग्यारहवें स्वप्ने में उछलतीहुई उंची तरंगों सहित समुद्रदीखे है।
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१२ बारहवें स्वप्ने में लक्ष्मी का स्थानक महा मनोहर
.. सिंहासन दीखे है।
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१३ तेरहवें स्वप्ने में नाना प्रकार की ध्वजाओं कर शोभित
आकाश विषे आवता हुवा देव विमान दीखे हैं।
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