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जैनबालगुटका प्रथम भाग। १४ वासुपूज्य का १५ अभिनन्दन नाथ की यह १५ टौंक पूर्व दिशा में हैं फिर बीच में जल मन्दिर है, फिर पश्चिम दिशा में १६वीं टौंक श्रीधर्मनाथ को है १७ सुमतिनाथ की । १८ शांतिनाथ की १९ महावीर की २० सुपार्श्वनाथ को २१ विमलनाथ की २२ अजित नाथकी २३ नेमिनाथकी २४ पार्श्वनाथ को यह ९ टौंक १६ से २४ तक पश्चिम दिशा में हैं इनका विशेष हाल जैन तीर्थयात्रा में लिखा है जोहमारे यहां ले १)में मिलती है।
अथ श्रीगिरिनार जी के दर्शन।
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इस श्री गिरनार जी के नकशे में पहले पहाड़ के नीचे ठहरने की धर्मशाला है फिर पहाड़ पर जाने को फाटक यानी दरवाजा है फिर ऊपर चढ़ पहाइपर दर्शन करने जानेको दूसरा फाटक यानी दरवाजा है फिर श्वेताम्बरी मंदिर हैं इस जगह कोलोरठ के महल घोलते हैं फिर थोड़ी दूर पर दो दिगम्बरी मंदिर हैं यहां ही राजल जो की गुफा है यहां राजलजीने तप किया है यहांसे आगे रास्ते में अग्विका देवी : को मंदिर आता है यह इस पहाड़ की रक्षक हैं फिर जाकर 'श्री नेमिनाथं तीर्थंकर के केवलज्ञानकल्यानक की टोंक पर पहुंचते हैं फिर मोक्ष कल्याणक की टौंक पर पहुंचते होसि पर्वत से श्रीनेमिनाथ तीर्थंकर आदि ९९ करोड मुनि मुक्त गये हैं इसका विशेष ' हाल हमने जैन तीर्थयात्रामें लिखा है श्रीगिरनार जी को ऊर्जयन्त गिर भी कहते हैं।