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________________ अपनी साधना में । यही कारण है कि त्रिपिटक में बुद्ध के 'चरथ भिक्खवे चारिकां " बहुजन हिताय बहुजनसुखाय' जैसे वाक्य मिलते हैं किन्तु जैन आगमों में ऐसे वाक्य नहीं मिलते | परिणाम स्पष्ट है कि बुद्ध के समय का एक प्रभावशाली धर्म होकर भी जैन धर्म प्रचार की दृष्टि से पिछड़ गया। स्वयं पिटक इस बात के साक्षी हैं कि जहाँ कहीं बुद्ध गये प्रायः सर्वत्र बड़े-बड़े नगरों में प्रभावशाली निर्ग्रन्थ उपासको से उनका मुकाबला हुआ और अन्त में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ा | 1 प्रचार को प्राधान्य नहीं होने से जैन धर्म बौद्ध धर्म के समक्ष अपना प्रभाव कायम न रख सका किन्तु साहित्य निर्माण की दृष्टि से भी यह पिछड़ गया यह बात नहीं है | त्रिपिटक और उनकी कथा के अतिरिक्त पालि में अन्य बौद्ध साहित्य नहीं बना है जब कि प्राकृत में जैन साहित्य निर्माण की अविच्छिन्न धारा बीसवी शताब्दी तक कायम रही है । बौद्ध धर्म का महायानी साहित्य ! संस्कृत में लिखा गया और जैन धर्म का भी साहित्य संस्कृत में लिखा गया । चौदहवीं शताब्दी के बाद बौद्ध संस्कृत साहित्य प्रायः नही लिखा गया जब कि 3 जैन संस्कृत साहित्य का निर्माण आज भी हो रहा है । बौद्ध साहित्य सोलोनी, तिब्बती, चीनी आदि भारतीयेतर भाषाओं में अपने प्रचार क्षेत्र के कारण लिखा जाता रहा जब कि जैन साहित्य अपभ्रंश और तज्जन्य प्राचीन और आधुनिक भारतीय प्रादेशिक भाषाओं में मर्यादित रहा । जैन और बौद्ध दोनों धर्मों का प्रतिवाद करने के लिए वैदिक विद्वान् संनद्ध थे किन्तु अपनी संस्कृतभक्ति और अपनशद्वेष के कारण जैन आगमों और पालि पिटकों से वैदिक विद्वान् प्रायः अनभिज्ञ ही रहे । ऐसा अभी एक भी प्रमाण देखने में नहीं श्राया जिससे स्पष्ट सिद्ध हो कि प्राचीन काल के वैदिक विद्वानो ने प्राकृत या पालि के ग्रन्थ देखकर उनकी विस्तृत श्रालोचना की हो । | वैदिको द्वारा आलोचना तब ही सभव हुई जब जैन और बौद्ध ग्रन्थों का निर्माण 'संस्कृत में होने लगा । ✓ r श्रालोचना- प्रत्यालोचना का क्षेत्र खास कर वादप्रधान दार्शनिक संस्कृत साहित्य है । जैनों की अपेक्षा बौद्धों ने इस क्षेत्र में प्रथम प्रवेश किया । जैन परम्परा के सिद्धसेन और समन्तभद्र के पहले भी नागार्जुन जैसे प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक अपना प्रभाव इस क्षेत्र में जमा चुके थे और वैदिक दार्शनिकों में एक हलचल पैदा कर चुके थे । वात्स्यायन जैसे वैदिकों ने नागार्जुन के पक्ष का खंडन किया था और उनको वसुबन्धु और दिग्नाग जैसे दिग्गज बौद्ध दार्शनिकों
SR No.010199
Book TitleJain Adhyayan ki Pragati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
Publication Year
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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