SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपस्थित विद्वद्वृन्द ! सर्वप्रथम आप सब गुरुजनों का आभार मानना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ कि आपने मुझे इस पद पर बैठा दिया । किन्तु जब मैं अपनी योग्यता का विचार करता हूँ तब यह प्रतीत होता है कि आपने मुझ जैसे व्यक्ति को अवसर दिया है उसका कारण मेरी विद्वत्ता नहीं किन्तु जैन धर्म और प्राकृत भाषा के क्षेत्र में अध्ययन करनेवालों की कमी - यह है ।' जो इस क्षेत्र में विद्वत्ता रखते हैं उन्होंने पुन: इस पद को स्वीकार करना उचित नहीं समझा होगा तब मेरे जैसे तुच्छ व्यक्ति को यह अवसर उन्होंने दिया - ऐसा मैं हृदय से मानता हूँ । मेरे लिये यह श्रानन्द और प्रतिष्ठा की वस्तु होने पर भी जब मैं अनुभव करता, हूँ कि जैन धर्म और प्राकृत भाषा का क्षेत्र विद्वानों द्वारा उपेक्षित है तब हृदय दुःख का अनुभव करता है । और इस उपेक्षा के कारणों की खोज की और मन स्वतः प्रवृत्त हो जाता है । इन कारणों को चर्चा के पहले मैं दिवंगत श्रात्मा डॉ० हर्टल का स्मरण करना अपना कर्तव्य समझता हूँ । डॉ० हर्टल का परिचय आप सबको देने की श्रावश्यकता नहीं । जैन साहित्य के क्षेत्र में कथा साहित्य का जो सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्व है उस ओर विद्वानों का ध्यान श्राकृष्ट करने का श्रेय डॉ० हर्टल को था । उनकी ८४ वर्ष की आयु में गत वर्ष मृत्यु हुई उससे जो क्षति हुई उसकी पूर्ति हो नहीं सकती । 1 ' इस दुःखद घटना के साथ ही जब हम कुछ श्रानन्ददायक घटनानों की श्रोर ध्यान देते हैं तब हमारा हृदय गद्गद् हो जाता है और ऐसा लगता है कि इस उपेक्षित क्षेत्र में कार्य करने वालों की सराहना भारतवर्ष के मनीषी और रजनैतिक नेता भी करने लगे हैं यह एक शुभ लक्षण है। पिछले जून के • महीने में प्रज्ञाचक्षु पंडित सुखलालजी का अभिनन्दन समारोह 'अखिल भारतीय पंडित सुखलालजी सन्मान समिति' जिसके अध्यक्ष श्रीमोरारजी देसाई थे, की ओर से यम्बई में हुआ । उपराष्ट्रपति डॉ० राधाकृष्णन् के करकमलों से पंडितजी के लेखों को 'दर्शन और चिन्तन' नामक संग्रह जो तीन भागों में मुद्रित था, उन्हें समर्पित किया गया और ५५ हजार रुपयों की थैली भी, दो 3
SR No.010199
Book TitleJain Adhyayan ki Pragati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
Publication Year
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy