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है । जैन कथाओं को आधुनिक ढङ्ग से सजाकर लिखने में भी श्री बालाभाई कुशल हैं और श्री रतिलाल देसाई भी। इन दोनों के कथासंग्रह क्रमशः 'सद्वाचन श्रेणी' और 'सुवर्ण कंकण' के नाम से प्रकाशित हुए हैं। जीवन को उन्नत बनाने में ये कथाएं सहायक हो ऐसी चोट इनमें विद्यमान है।
अपनश भाषा का साहित्य क्रमशः प्रकाशित हो रहा है किन्तु अभी कई प्रन्थ अप्रकाशित ही हैं। डा. हरिवंश कोछड़ ने 'अपभ्रश साहित्य' लिख कर अपभ्रंश के अध्येताओं के लिये एक अच्छा परिचय ग्रन्थ उपस्थित किया है। डा० कोछठ ने इस गन्थ में अपभ्रंश भाषा का परिचय उसके विकास के । साथ दिया है तथा हिन्दी भाषा के साथ अपभ्रंश के सम्बन्ध को भी स्पष्ट किया है । तदुपरांत अपभ्रंश के विविध साहित्यका परिचय कराया है।
पिछले दो वर्षों में अभिनन्दन और स्मृति ग्रन्थों के रूप में अनेक विद्वानों के सहकार से जो लेख-संग्रह प्रकाशित हुए हैं उन्हें देखते हुए 'एक बात तो अवश्य ध्यान में आती है कि विद्वानों का ध्यान जैन दर्शन, समाज, धर्म आदि की ओर गया है किन्तु अभी प्राकृत भाषा विषयक विशेष अध्ययन उपेक्षित है । जैन कला की दृष्टि से 'श्राचान श्री विजयवल्लभ सूरि स्मारक ग्रन्थ' सुरुचिपूर्ण सामग्री से सपन्न है। जैन कला के विविध क्षेत्रों को स्पर्श करने- . वाले अनेक चित्र और लेखों के कारण यह अभिनन्दन ग्रन्थ कला के अध्येताओं के लिये संग्रहणीय बन गया है । तदुपरांत जैनदर्शन, धर्म, समाज आदि के विषय में भी अच्छे लेखों का संग्रह इसमें हुआ है। विशेष बात यह है कि हिन्दी, अंग्रेजी और गुजराती तीनों भाषाओं के लेख संग्रह में हैं।
ईसा.की १७वीं शती में होनेवाले जेनदर्शन के प्रसिद्ध विद्वान् उपाध्याय यशोविजयजी की स्मृति रूप 'यशोविजय स्मृति ग्रन्थ' का प्रकाशन उपाध्याय जी के विविध विषयक पांडित्य और आध्यात्मिक जीवन को स्फुट करने में सफल हुधा है और उपाध्यायजी की जैन साहित्य को जो देन हैं उसका अच्छा चित्र उपस्थित करता है।
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थाचार्य राजेन्द्र सूरि जिन्होंने 'अभिधानराजेन्द्र' महाकोप का निर्माण किया था, उनके निधन की पचासवीं तिथि के स्मारक रूप से 'श्रीमद विजय राजेन्द्र सुरि स्मारक ग्रन्थ' का प्रकाशन हुआ है। विशालकाय इस ग्रन्थ में हिन्दी अग्रेजी और गुजराती में प्राचार्य राजेन्द्र सूरि के जीवन के अतिरिक्त दर्शन और संस्कृति; जिन, जिनागम और जैनाचार्य; जैनधर्म की प्राचीनता और.