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में अहिंसा के विषय में एक विद्यापीठ स्थापित करने की योजना बनाई गई है। उससे भी जैन संशोधन को बल मिलेगा। बनारस के पार्श्वनाथ विद्याश्रम की जैन साहित्य के इतिहास की योजना प्रगति कर रही है और विद्वानों के सहकार से वह पूर्ण होगो तब जैन साहित्य का महत्त्व और उसकी व्यापकता प्रत्यक्ष होगी । बनारस का जैन सस्कृति सशोधन मंडल भी इस क्षेत्र में अपनी सीमित शक्तियों के होते हुए भी कार्य कर रहा है । श्वेताम्बर जैन कान्फ्रेन्स, बम्बई, महावीर तीर्थक्षेत्र समिति, जयपुर और वीर सेवा मंदिर, दिल्ली का विशेष ध्यान जैन भंडारों को व्यवस्थित करने की ओर गया है और उनके द्वारा हस्तलिखित प्रतिनों को सूचियाँ प्रकाशित हो रही हैं। फलस्वरूप कई अज्ञात ग्रन्थों का पता चला है और ग्रन्थस्थ प्रशस्तिओं के प्रकाशन द्वारा कई ऐतिहासिक तथ्यों को उपलब्धि हुई है। . जैन श्रागों के आधुनिक पद्धति से संशोधित संस्करण, अनुवाद के साथ प्रकाशित करने का प्रयत्न श्वेताम्बर स्था० कान्फ्रेन्स, श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा और प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी ये तीनों संस्थाएँ कर रही हैं । यदि ये संस्थाएँ परस्पर सहकार से इस महत्त्वपूर्ण कार्य में लग जायें तो कार्य की संपूर्ति सहज और सुचारु रूप से होगी। __ यह परम हर्ष की बात है कि डा. हीरालालजी के प्रयत्न से सिद्धान्त ग्रन्थ पटखण्डागम का धवलाटीका के साथ जो प्रकाशन हो रहा था वह अब १६ भागों में सम्पूर्ण हो गया है। कपायपाहुड भी सानुवाद प्रकाशित हो गया है और महाबंध भी पूर्ण होने जा रहा है। इस तरह से दिगम्बर संप्रदाय के आगम ग्रन्थों का यह प्रकाशन 'अब समाप्तप्राय है और जैन धर्म के कर्म सिद्धान्त को जानने का एक उत्तम साधन विद्वानों को उपलब्ध हो गया है। ई०१६५६-५७ की प्रगति
मौलिक संशोधन के क्षेत्र में डेक्कन कालेज, पूना सराहनीय कार्य कर रही है। उसके द्वारा प्रकाशित डॉ. देव का History of Jaina Monachism और डा० दावने का Nominal Composition in Middle-IndoAryan अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। डा० देव ने जैन श्रमणों के प्राचारों का कालक्रम से मूल प्राकृत और सस्कृत ग्रन्थों से निरूपण एक बहुश्रत विद्वान् की योग्यता से किया है। भूमिका रूप से उन्होंने श्रमण परपरा का प्रादुर्भाव कैसे हुश्रा इस समस्या के विषय में विविध मतों की समी क तामस्वय