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प्राचार्य चरितावली
त्यक्त-शाल में रह खुल्ली करवाई, देवभद्र से उनकी हुई जुदाई ।
पोशालिक गरण की यह बात उघारी ॥ लेकर० ॥१४१॥ अर्थ.-प्राचार्य विजयचन्द्र ने प्राचार मार्ग मे कई वातो की छूट दी। उनके ११ बोलो मे वस्त्र की गाठ वाँधकर रखना, नित्य विगय वापरना, वस्त्र धोना, साध्वियो का लाया हुआ याहार लेना आदि मुख्य है ।
, छोडी हुई पोणाल को उन्होंने खुल्ली करवाई तव से देवेन्द्र सूरि और देवभट से उनका सम्बन्ध अलग हो गया ।
पोशालिक मत की यह खुली वात, तपागच्छ पट्टावली मे स्पष्ट देखने में आती है ॥१४॥
आचार्य धर्मघोष
॥ लावणी॥ सदी तेरवी का यह हाल सुनाया, शिथिल देख अांचल तपमत प्रगटाया। बढ़ा जोर यतियो का फिर लो लेखो, धर्मधोष ने शाकिनी वश की देखो।
उज्जैनी में योगी हिम्मत हारी ॥ लेकर० ॥१४२।। अर्थ-विक्रम की तेरहवी सदी की यह घटना है। शिथिलाचार को वढते देख जयचन्द्र सूरि के शिष्य विजयचन्द्र सूरि ने क्रिया-उद्धार किया और विधि पक्ष एव आचल गच्छ नाम स्वीकार किया।
फिर देवेन्द्र मूरि के पश्चात् धर्मधोप सूरि हुए। उनका समय मत्रतंत्र का युग था । मन्त्र के प्रभाव से यतियो का जोर वढ रहा था । यति लोग विभिन्न स्थानो पर अपनी गादियाँ भी कायम कर चुके थे और वे मत्रतन्त्र के वल से समाज मे प्रभाव जमाने मे विशेष प्रयत्नशील थे।
उज्जयनी मे एक योगी का अत्यन्त जोर था । उसकी अनुमति के