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________________ प्राचार्य चरितावली ७६ अर्थः-मुनि चन्द्र सूरि ने जीवन भर पांच विगयो का त्याग किया, वे मात्र छाछ पीकर हो जोवन चलाते रहे। इन्होने गण का नाम चलाया। आचार्य सुमतिसिह से सार्धपूनमिया मत का प्रचलन हुआ। सं० १२५० मे आगमिक मत का प्रारभ हुया । ये क्षेत्र देव की पूजा नही मानते है । आगमानुकूल विचार होने से इस गच्छ का नाम “आगमिया' कहा जाता है ॥१३॥ .. - लावणी॥ खरतर गच्छ के जिनदत्त जानो भाई, बारह सौ अरु चार साल बतलाई। हुए प्रभावक देव सिद्ध कर लीना, 'स्वर्ग मिला अजमेर शान्तिरस भीना। . विधि पख ने मुहपत्ती दीनी डारी ॥ लेकर० ॥१३८।। - अर्थ --पट्टावली के अनुसार सं० १२०४ में जिनदत्त सूरि से खरतर गच्छ की उत्पत्ति वतलाई गई है परन्तु प्रभावक चरित्र के अनुसार जिनेश्वर मूरि के द्वारा-खरतर गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। इस गच्छ मे जिनदत्त सूरि बड़े प्रभावक और दैवी-सिद्धि वाले प्राचार्य थे । इनका स्वर्ग वास अजमेर मे हुआ माना जाता है। विधि पक्ष ने मुहात्ती के बदले वस्त्रांचल से यतना कर के "अांचल गच्छ” नाम प्राप्त "किया जो प्रसिद्ध है ।११.८॥ लावणी॥ जगच्चन्द्र ने आजीवन तप कीना, . जैसिह ने तपा विरुद दे दीना। सोमप्रम ने जल कुकरण वंद कीना, मरु में दुर्लभ जल से भ्रमरण न दीना। शाखा इसकी कहूं जरा विस्तारी ॥ देकर० ॥१३६॥ अर्थः-जगत् चन्द्र सूरि ने आजीवन प्रायविल तप किया, जिससे
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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