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________________ ७६ आचार्य चरितावली नाम प्रकट कर के विचरो । भालेज नगर में आप को शुद्ध भिक्षा प्राप्त होगी ।" देवी के कथनानुसार विजयचन्द्र पावागढ़ से भालेज नगर गये और वहा शुद्ध प्रहार प्राप्त कर अनशन तप का पारण किया । वहाँ से वे नगर गये और वहा के कोटि नामक व्यवहारी को भक्त बनाया । उपरोक्त दैवी घटना कहाँ तक सत्य है, यह विचारणीय है । कोटि सेठ एक वार पाटण गया और प्रतिक्रमण मे वदना देते समय मुंहपति के स्थान पर वस्त्र के छोर से वदना की । कुमारपाल भूपाल ने गुरु से इसका कारण पूछा तो गुरु ने विधि पक्ष की बात कही । इस पर कुमारपाल ने वस्त्राचल से वदना करने के कारण विधि पक्ष का नाम " प्राचलक" प्रचलित किया । इस प्रकार स० १२१३ में इस गच्छ की उत्पत्ति हुई और विजयचन्द्र को ग्राचार्य स्थापित किया । श्रागमिक (श्रागमियां) गच्छ - पूनमिया गच्छ के श्री शीतलगुण सूरि और देवभद्र सूरि ने ग्राचल गच्छ मे प्रवेश किया, फिर उसे भी त्याग कर उन्होने अपना स्वतन्त्र मत चलाया । उन्होने क्षेत्र देवता की स्तुति का निपेध किया, इस प्रकार की कई नूतन प्ररूपणाएं की और अपने मत का नाम "आगमिक गच्छ" रखा । इस गच्छ की उत्पत्ति सं० १२५० में होना कहा जाता है । इस मत मे भी बहुत से शक्तिशाली प्राचार्य हुए 12 १. २. ॥ लावणी ॥ विक्रम शत द्वादश पिच्चासी मांही, उत्पत्ति कही भाई । बीजामत हुए नाना: गच्छ ता की लूका, कड़वा, श्रागे इनका परिचय देखो छाना । किया किया उद्धार विमल यशधारी ॥ देकर० ॥१३५॥ तपा गच्छ पट्टावली पृ० १४४-४५ ॥ तपा गच्छ पट्टावली, पृ० १४६
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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