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________________ जैन आचार्य चरितावली ॥राधे० ॥ शासनपति को नंदन करके, गुरु को शीश झुकाता हूं। ज्योतिर्धर प्राचार्य प्रवर की, गुणगाथा मैं गाता हूं ॥१॥ अर्थ -सर्व प्रथम मगलनिधान शासनपति भगवान् महावीर को वदन कर, श्री ज्ञानदाता गुरुदेव को नमस्कार करता हूँ। फिर वीरशासन के ज्योतिर्धर आचार्य प्रवर का संक्षिप्त गुणगान करता हू ।।१।। ॥ लावणी ॥ यह जिन शासन की महिमा जग में भारी, लेकर भरणा तिरे अनन्त नर नारी ॥टेर॥ चतुर्थ काल में अन्त वीर शिव पाये, अर्द्ध भरत में प्रांतर तम तब छाये। ज्योतिर्धरों ने धर्म प्रदीप जलाया, भवजीवों को सत्यमार्ग बतलाया ॥ कृतज्ञ मन से जाये हम बलिहारी ॥ लेकर० ।।१।। अर्थ.-चतुर्थ काल के अंत मे जव भगवान् महावीर मोक्ष पधारे, तव दक्षिणार्द्ध भरत मे अज्ञान का अंधकार छा गया । उस समय सुधर्मा प्राटि ज्योतिर्धर प्राचार्यो ने धर्म का प्रदीप जला कर भव्य जीवो को सत्य का मार्ग वतलाया । हम सव कृतन भाव से बार-बार उनकी वलिहारी __ जाते है । उनका यह महान् उपकार अविस्मरणीय है ।।११! ॥ लावणी ॥ युग प्रधान सन्तों की जीवनगाथा,
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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