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प्राचार्य चरितावली
दोहा।। धनगिरि को लख कहे सुनन्दा, लो भिक्षा मुनिवर मेरी । हुई बहुत हैरान बाल से,
ले लो अब न करो देरी ॥१४॥ अर्थ.-धनगिरि को देखकर सुनन्दा वोली-"महाराज | लो मेरी यह पुत्र भिक्षा । बहुत दिनो से मैं आपके इस पुत्र के कारण हैरान थी, अब आप ही इसे संभालो, देरी मत करो' ||१४||
॥दोहा।। पहले से गुरु ने कह भेजा, मिले वही तुम ले माना। भिक्षा में ले वाल पुत्र, धनगिरि पाये गुरु के स्थाना ॥१५॥
अर्थ -गुरु ने धनगिरि को यह कहकर भिक्षार्थ भेजा था कि सचित-अचित जो भी भिक्षा मे मिले, ले पाना । तदनुसार भिक्षा में बालक को ही लेकर धनगिरि गुरु के पास लौट आये ॥१५॥
॥दोहा।। भार देख गुरु ने बालक का, वज़ नाम दे रखवाया। शय्यातरी के पास पला, फिर योग्य समय संयम ठाया ।।१६।।
अर्थ:-गुरु ने शिप्य के द्वारा लाई हुई भिक्षा की झोली पकडी तो भार मालूम हुआ, भारी देख कर गुरु ने उस बालक का नाम वज्र रखा। गुरु ने शय्यातरी बहन को पालन करने हेतु वह वालक सौप दिया। फिर योग्य होने पर उसे मुनिदीक्षा दी ॥१६॥
॥ लावणी ॥ सुनंदा स्नेहाकुल हो कर आई, वाल प्राप्ति हित करने लगी लड़ाई। न्याय कराने राज सभा चढ़ धाई, शययातरी को नृप ने लिया बुलाई। शय्या-तरी बालक को महतारी ॥ लेकर० ॥६॥