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________________ श्राचार्य चरितावली प्राचार्य तसलीपुत्र के उपाश्रय में जाने के लिये रक्षित किसी साथी को देख रहा था । इतने में एक श्रावक याया जो, उच्च स्वर मे "निस्सिही" २ कहता हुया उपाश्रय मे प्रविष्ट हुआ और वहां ग्राचार्य को वदन करके बैठ गया । उसको उपाश्रय मे प्रवेश करते और प्राचार्य को वंदन करते व उनके सन्मुख बैठते देख कर रक्षित भी उत्ती प्रकार वंदन कर वैठ गया । प्राचार्य गरणी तौसली पुत्र ने रक्षित को नवागन्तुक समझकर पूछा ॥७८॥ ४२ ॥ लावणी ॥ धर्म बोध श्रावक से मैने पाया, दृष्टिवाद पढ़ने को शरणे आया। साधु धर्म लेने पर ज्ञान दिलाऊ, प्रज्ञा सब मंजूर ज्ञान मैं पाऊं । परिचित भूधर स्थानान्तर सुखकारी ॥ लेकर ० ||७६ || अर्थ - रक्षित ने अपना परिचय देते हुए कहा, "गुरुवर । मैने धर्म का प्रारम्भिक वोध इस श्रावक से पाया है । मैं माता के आदेशानुसार दृष्टिवाद पढने को आपकी सेवा मे आया हूँ ।" आचार्य ने कहा, "दृष्टिवाद का ज्ञान तो मुनिव्रत लेने पर सिखाया जाता है ।" रक्षित बोला, "ग्रापकी जो प्राज्ञा हो, मुझे स्वीकार है, किसी भी तरह यह ज्ञान दीजिये ।" गुरु चरणो मे दीक्षित होकर रक्षित ने प्राचार्य से कहा, "गुरुदेव ! यहां के राजा एवं प्रजा मेरे परिचित है इसलिये यहा से प्राप स्थानान्तर कर लीजिये तो अच्छा है ||७६ || || लावणी || स्वल्प काल में अंग इग्यारह पाये, श्रागे पढ़ने प्रार्य वत्र बतलाये । श्रार्य वज्र थे पूर्व ज्ञान में नामी,
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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