SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचार्य चरितावली ३४ अर्थ.-बारह वर्ष तक गुप्त रह कर इन्होने उत्कृष्ट तप की साधना करते हुए शासन की प्राध्यात्मिक सेवा की। इस बीच १८ राजारो को धर्म मार्ग मे लगाया। फिर निर्मल मन से प्रायश्चित्त द्वारा कर्म भार को हल्का कर गुरु चरणों मे आकर उन्होने पुनः दीक्षा स्वीकार की और संघ मे पुनः सम्मिलित हुए ॥७२॥ लावरणी।। धन्य भाग से संघ रहा गुरगधारी, नायक भी निष्पक्ष न्याय प्रियकारी। शिष्य सुभागी अनुशासन में चाले, स्वेच्छाचारी हो न चले मतवाले। ज्ञान क्रिया को धार प्रात्मा तारी, ॥ लेकर० ॥७३॥ अर्थ.-उस समय का कैसा आदर्श था, संघ व्यवस्था भी आदर्श और नायक भी निष्पक्ष एव न्याय प्रेमी । शिप्य भी कैसे भाग्यशाली कि प्रेम से अनुशासन का पालन करते, स्वेच्छाचारी होकर मनमाना आचरण नही करते । सिद्धसेन ने गुरु की आज्ञानुसार ज्ञान क्रिया का सम्यक पालन करते हुऐ आत्मा का उद्धार किया। प्रार्य रक्षित ॥दोहा।। रक्षित का अब हाल सुनाऊँ, माता से प्रतिबुद्ध हुए। पूर्व ज्ञान का शिक्षण लेकर, शासन के प्राधार हुए ॥१३॥ अर्थ -अव आर्य रक्षित का हाल सुनाता हूँ, जो माता की शिक्षा से प्रेरित होकर दश पूर्वो के ज्ञाता और शासन के आधार बने ।।१३।। ॥तर्ज चलत।। 'सोम देव के पुत्र हुए एक नामी, पाट नगर में शिक्षा ली हितकामी। विद्या पा दशपर में पीछे पाये, नागर जन सब उत्सव कर घर लाये। मातृ चरण मे किया नमन शिर डारी लेकर०॥७४।।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy