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________________ आचार्य चरितावनी m लावरणी!! मथुरा और वल्लभी में चौथी जानो, स्कंदिल नागार्जुन मुखिया पहचानो। वीर काल सौ पाठ तीस बतलाया, उत्तर दक्षिण मुनिगण के हित लाया । पाठ भेद देवधि लिये सवारी॥लेकर०॥६॥ अर्थ -चौथी वाचना वीर निर्वाण सम्बत् ८३० मे आर्य नागार्जुन और स्कदिल के नेतृत्व मे हुई। जिसमे उत्तर के श्रमण मथुरा मे और दक्षिण के वल्लभी मे क्रमशः नागार्जुन और स्कदिल के नेतृत्व मे एकत्र हुए । प्राचार्य देवधि ने दोनो वाचनायो के पाठ भेदो को उचित रूप से मिला कर एक रूपता लाने का प्रयत्न किया ।।६०॥ इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है : लावणी॥ मचा युद्ध अरु मतसघर्षण जग मे, हूरण गुप्त का समर मध्य भारत मे । भिक्षा दुर्लभ त्यागी रह गये विरले, श्रतसंरक्षण करके युग को बदले। स्कदिल ने मथुरा मे की तय्यारी लेकर०॥६१॥ अर्थ -वीर निर्वाण की नवमी सदी मे हरण और गुप्त वश के राजाओ का मध्य भारत मे युद्ध चला और साप्रदायिक संघर्ष से भिक्षा दुर्लभ हो चली। उस समय ऐसे शक्तिशाली श्रमण अल्प संख्या मे थे जो शास्त्रो का रक्षण कर युग को बदल सके । अत आचार्य स्कदिल ने मथुरा मे श्रुत संरक्षण के लिये आगम वाचना की ॥६१।। लावरणी॥ नागार्जुन ने वल्लभी सभा भराई, दक्षिण के मुनि हुए इकट्ठे आई। दोनों मे कुछ पाठ भेद रह पाये,
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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