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________________ आचार्य चरितावली लावरणी॥ भूतदिन नागार्जुन पीछे दीपे, मार्दव मन शोभा में कांचन जोपे । सयम विधि के ज्ञाता कह गुरण गाये, वर्ष एक कम बीस शतायु पाये। . नाइल कुल की प्रीति बढ़ाई भारी लेकर०॥५५।। अर्थः-नागार्जुन के पीछे प्राचार्य भूतदिन्न हुए। माईव भाव से ये काचन की तरह चमक रहे थे । देव वाचक ने संयम विधि के ज्ञाता कह कर इनकी स्तुति की है। इन्होने अपनी योग्यता से नाइल कुल का बहुत ही प्रेम स पादन किया । इनकी पूर्ण आयु ११६ वर्ष की वतलाई गई है ॥५५॥ लावरणी॥ . - भूतदिन के पट लौहित्य गणी राजे, सूत्र अर्थ के विशिष्ट ज्ञाता छाजे । - - वीरकाल नव सौ' 'चालीस की वेला,' ' ''. अमरलोक वासी हुए छोड़ झमेला। दूष्य गरणी को किया पट्ट अधिकारी लेकर०॥५६।। अर्थ-भूतदिन के बाद आर्य लोहित्य गणी पद पर विराजे । ये सूत्र अर्थ के विशिष्ट ज्ञाता थे। इन्होने दूष्य गणी को उत्तराधिकारी वना कर वीर स वत् ९४० में स्वर्ग प्राप्त किया ।।५६॥ लावरणी॥ दूष्यगणी के पद देवधि विराजे, पूर्व ज्ञान के धारक महिमा छाजे । स्मृतिवल को लखि हानि गरणी ने सोचा, सुकाल मे मुनिमंडल से पालोचा। श्रुतवाचन की मन मे बात विचारी लेकर०॥५७।। अर्थः-दूप्य गणी के बाद २७ वे पट्ट पर प्राचार्य देवधि होते है ।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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