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परिशिष्ट
श्रमणसघ में सम्मिलित नही हुए। जो संत श्रमणसंध में मिले थे वे भी अधिकाशत संतोपजनक सघ-व्यवस्था के अभाव मे श्रमरणसघ से पृथक् हो गये। इस प्रकार आज स्थानकवासी परम्परा मे पूर्व की सम्प्रदायो के साथ श्रमणसंघ भी एक पृथक सम्प्रदाय का रूप धारण कर बैठा है।