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________________ प्राचार्य चरितावली १३५ सती जसकंवर जी इस सप्रदाय की प्राचार निष्ठ और प्रभावशीला आर्या है। शाखा ५ और उसकी प्राचार्य परम्परा (१) पूज्य श्री जीवराज जी म० (२) , लाललन्द जी म० (३) , मनजी ऋपि म० " नाथूरामजी म० (जिनके नाम से अभी सम्प्रदाय चलती है) , लखमीचद म० , छीतरमलजी म० (७) , रामलालजी म० (८) , फकीरचन्द जी म. (६) धर्मोपदेप्टा मुनि श्री फूलचन्दजी म० आदि अभी विद्यमान है। ___मुनि सुशीलकुमार जी भी इसी परम्परा के ख्यातनामा संत है । इसकी भी एक उपशाखा है, जिसमे मुनि श्री कुन्दनमलजी आदि इस प्रकार है: १. पूज्य रामचन्द्र जी ५. पूज्य विहारीलालजी २ , रतीरामजी ६ , महेशदासजी ३. ,, नदलालजी ७. , वरखभाणजी ४. ,, रूपचंदजी ८ , कुदनमलजी इन सभी शाखायो मे अभी कई वर्षों से प्राचार्य परम्परा उठ जाने से प्रवर्तक आदि पद-धारक मुनिराज ही सम्प्रदाय की व्यवस्था चलाते है। (परिशिष्ट) धर्मोद्धारक श्री धर्मसिंहजी लोकागच्छ के श्री पूज्य शिवजी म० के समय मे धर्मसिहजी नाम के
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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