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प्राचार्य चरितावली
१३१ इनकी गादी वालापुर मे है। वड़ोदा गादी के श्री पूज्य न्यायचद्रजी थे और जैतारण (अजमेर) की गादी के पूज्य विजयराजजी थे।
इनके उत्तराधिकारी यति हेमचन्द्रजी का भी बड़ौदा मे स्वर्गवास हो गया अव यति भिक्खालालजी आदि है, किन्तु गादीधर कोई नहीं है।
(परिशिष्ट) धर्मोद्धारक श्री जीवराजजी महाराज लोकागच्छ की शिथिलता के वात सत्रहवी सदी के अन्त मे और अठारहवी के प्रारम्भ मे, जव लोकाशाह द्वारा जलाई गई धर्म-जागृति की ज्योति पुनः मंद होने लगी तब कुछ आत्मार्थी पुरुपो ने क्रिया-उद्धार के द्वारा पुनः उस मलिनता व शिथिलता को दूर करना चाहा। उनमें श्री जीवराजजी, श्री धर्मसिहजी, पूज्य लवजी ऋषि, धर्मदासजी और हरिदास जी प्रमुख थे । उनको शिष्य परम्परा का विस्तृत परिचय इस प्रकार है:
प्रथम क्रियोद्धारक श्री जीवराजजी महाराज
पट्टावलियो के अनुसार जीवाजी और जीवराजजी नाम के दो महा पुरुष प्रसिद्ध हुए है। जीवराजजी महाराज की “जैन स्तुति पद्यावली" के अनुसार उनका समय १७वी शताब्दी का पश्चिमाद्ध माना गया है। उन आचार्य जीवराजजी से संबधित ५ शाखाएं आज भी विद्यमान हैं। वे इस प्रकार है.
(१) पूज्य श्री अमरसिह जी महाराज की सम्प्रदाय, (२) पूज्य श्री नानकरामजी महाराज की सम्प्रदाय, (३) पूज्य श्री स्वामी दासजी महाराज की सम्प्रदाय, (४) पूज्य श्री शीतलदास जी महाराज की सम्प्रदाय, (५) श्री नाथूरामजी महाराज की सम्प्रदाय ।
शाखा १ और उसकी आचार्य परम्परा (१) पूज्य श्री जीवराजजी महाराज, (२) , लालचन्दजी म.