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आचार्य चरितावली
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लघु भाई सौभाग्य हुए गुरु नामी । अन्तेवासी हस्ती ने मन धारी | लेकर० ॥ २०६।।
अर्थ-रत्नचन्द्रजो के शिष्य पूज्य हमीरमलजी महाराज हुए और नीसरे पट्टधर पूज्य कजोडीमल जी महाराज, चतुर्थ पूज्य श्री विनयचन्द्र जी महाराज गास्त्रो के ज्ञाता और प्रतिभाशाली मुनिराज थे । उनके छोटे गुरुभाई पूज्य सौभाग्यमलजी महाराज वडे ही यशस्वी सत हुए है। उनके गिप्य "हस्तीमल" (पूज्य हस्तीमल जी महाराज) के मन मे गुरुभक्ति से भूतकाल के इन प्राचार्यों की गुणगाथा गाने की भावना जागृत हुई ।।२०६।।
॥लावरणी॥
दो हजार छब्बीस डेह गढ़ माहि, भक्ति सहित गुणगाथा मैने गाई। परंपरा औ जन्य पटावली लख कर' किया काव्य निर्माण हृदय प्रीति घर । हस दृष्टि से करें सुज्ञ गुरगधारी॥लेकर॥२१०॥
अर्थः- संवत् २०२६ मे.डेह गांव मे पूर्ण भक्ति के साथ यह गुणगाया गाई । संत परम्परामो, ऐतिहासिक ग्रन्थो और पट्टावलियो का सम्यक् प्रकार से विश्लेपरणात्मक अध्ययन करके वडे प्रेम के साथ मैने इस काव्य का निर्माण किया है। विद्वान् पाठक हस जैसी "क्षीर नीर विवेक" बुद्धि से इस काव्य मे से गुणो को ग्रहण करे और सशोधनीय स्थलो के लिये प्रेम से सूचना करे तो यथोचित ध्यान दिया जायगा ।