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प्रस्तावना
यह छोटी सी पुस्तक उन तीन व्याख्यानों (निबंधों ) का संग्रह रूप है जो कि इतिहासतस्त्वमहोदधि जैनाचार्य श्रीविजयेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने भिन्न भिन्न समयों में जैनेतर संस्थाओं के लिये लिखे थे ।
प्रथम व्याख्यान वृन्दावन गुरुकुल में, विद्यापरिषद् के प्रमुख स्थान से आचार्यश्री ने दिया था। दूसरा व्याख्यान मथुरा में श्री दयानन्द - शताब्दि के अवसर पर धर्मपरिषद् मे आचार्य श्री के खास प्रतिनिधि फूलचन्द हरिचन्द दोशी ने पढ़ कर सुनाया था । तथा तीसरा व्याख्यान कलकत्ता की इंडियन फ़िलॉसोफिकल कांग्रेस मे जैनतत्त्वज्ञान के विषय मे निबन्ध
रूप था।
प्रथम व्याख्यान मे आचार्यश्री ने प्रमुख के उच्चासन पर बैठ कर आर्यत्व की जो सुन्दर और स्पष्ट व्याख्या की है
दृष्टि से आर्यों के जो प्रकार बतलाये हैं वे मात्र आर्यसमाज अथवा जैनसमाज के लिये ही उपयोगी हों, ऐसी बात नहीं है। किन्तु मनुष्यमात्र के लिये उन्नति के पथप्रदर्शक हैं । अमुक