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उपसंहार ।
सज्जनो!
जैनधर्म दया-अहिंसा मार्ग की तरफ जगत को आकर्षित करता है जैनों ने ही ब्राह्मणों को अहिंसक बनाया है, यज्ञ यागादि मे होती हुई हिंसा का जो नाश हुआ है वह जैनधर्म के प्रताप का ही फल है। गुजरात को अहिंसा का केन्द्र बनाने में भी जैनधर्म मुख्य कारण है ।
महान् धर्मो मे जैनधर्म की विशिष्टता अहिंसा मे है। कई लोग कहा करते हैं कि इस सुख विलास और प्रवृत्ति की दुनिया में जैनसूत्रों के सिद्धान्त अनुसार निर्वृत्तिमार्ग तथा त्यागमार्ग की तरफ आकर्पित होने से कैसे निभाव हो सकता है ? परन्तु उन्हें यह बात स्मरण रखनी चाहिये कि अन्त मे इसी मार्ग पर आने के लिये सव को बाध्य होना पड़ेगा।
इस बीसवीं शताब्दी मे अनेक साधुओं ने साधुता छोड कर इस मायामय संसार में जरूरी अनुकूलताएँ-ऐशो आराम के साधन सेवन करना प्रारम्भ कर दिये है। परन्तु जैन साधुओं का आचार संसार भर मे प्रशंसनीय गिना जाता है वे आर्यावर्त के प्राचीन साधु आचार का आज भी पालन कर रहे हैं।