________________
[ १६ ] इन सब प्रमाणों से यह बात सिद्ध हो जाती है। कि जैनधर्म अतिप्राचीन धर्म है। महावीरस्वामी जैनधर्म के अन्तिम तीर्थंकर हुए हैं और वे बुद्ध के समकालीन थे। ऋषभदेव प्रथम तीर्थकर हो गये हैं तथा उनका जन्म काल अत्यन्त प्राचीन है।
तत्त्वज्ञान। मुझे निष्पक्षपात पूर्वक कहना चाहिये कि जैनधर्म का तत्त्वज्ञान, इसकी धर्म और नीति मीमांसा, इसका कर्तव्याकर्तव्य शास्त्र एवं चारित्रविवेचन बहुत उच्च श्रेणी का है। जैनदर्शन में अध्यात्म, मोक्ष, आत्मा और परमात्मा, पदार्थ विज्ञान एवं न्याय के विषय मे स्पष्ट, व्यवस्थित तथा बुद्धिगम्य विवेचन पाया जाता है। जैनतत्त्वज्ञान इतना गम्भीर, महत्व का और तुलनात्मक दृष्टि से लिखा गया है कि मध्यस्थता पूर्वक पढ़ने वालों को तथा अभ्यासियों को यह ( तत्त्वज्ञान) सम्पूर्ण प्रतीत हुए बिना कदापि नहीं रह सकता, मात्र इतना ही नहीं परन्तु इसके अभ्यास से हृदय में एक प्रकार का अपूर्व आनन्द उत्पन्न होता है।
जिन जिन विद्वानों ने जैनदर्शन का तुलनात्मक अभ्यास किया है, वे इसकी मुक्तकण्ठ से प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते।
जगत क्या वस्तु है ? वह मात्र दो तत्त्व जड़ और चेतन