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जयशंकर 'प्रसाद'
समाज की समस्या
'प्रसाद' के नाटकों में अनेक बातें हैं, जिनका संक्षिप्त वर्णन करना श्रावश्यक है । संस्कृति-प्रधान नाटक होते हुए भी 'प्रसाद' जी की दृष्टि जीवन की समस्याओं की ओर भी थी । सम्भव है, असमय ही उसका देहावसान न हुआ होता तो वे जीवन की विभिन्न समस्याओं को लेते । 'ध्र वस्वामिनी' ऐतिहासिक, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक नाटक होते भी समस्या - नाटक है । मानव ने जब से विवाह नाम की संस्था का प्रवर्तन किया है, तब से आज तक यह जीवन की उलझन भरी सर्वव्यापक समस्या बना है । समय-समय पर अनेक युगदृष्टाओं ने इसमें संशोधन किए हैं, आगे भविष्य में भी ये होते रहेंगे । 'ध्रुवस्वामिनी' में इसी गम्भीर समस्या को लिया गया है । ध्रुवस्वामिनी गुप्त साम्राज्य की लक्ष्मो है और उसका पति है रामगुप्त - - एक भीरु, कायर, क्लीव और योग्य उस पति के साथ वह विवाद - धर्म का कब तक पालन करें, यह उसके सामने एक दुविधा भरा प्रश्न है । ध्रुवस्वामिनी और रामगुप्त का विवाह असम और राक्षस विवाह है । वह समाज और व्यक्ति के मंगल का विनाशक और कल्याण का घातक है। रामगुप्त की क्लीवता और भीरुता सीमा को लाँघ जाती है । वह आज्ञा देता है, "जाग्रो तुमको जाना पड़ेगा। तुम उपहार की वस्तु हो । आज मैं तुम्हें किसी को देना चाहता हूँ ।" जो मनुष्य इतना पतित हो कि अपनी पत्नी की भी शकराज खिंगिल को भेंट कर दे, उसको पति रहने का अधिकार नहीं | ध्रुवस्वामिनी की रक्षा के लिए अपने कुल की मर्यादा के लिए चन्द्रगुप्त खिंगिल के डेरे में जाकर उसका वध करता है । इससे पूर्व परिस्थितियों के वश ध्रुवस्वामिनी देवी और चन्द्रगुप्त का प्रेम विकसित हो चुका था। नाटक में दोनों का विवाह कराया गया है और धर्माधिकारी व्यवस्था देता है - " मैं स्पष्ट कहता हूँ कि धर्मशास्त्र रामगुप्त से ध्रुवस्वामिनी के मोक्ष की प्राज्ञा देता है ।"
इस नाटक में दूसरी समस्या है राजा की । यदि वह अयोग्य हो तो उसे राज्य - सिंहासन से उतार देना चाहिए ।
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हास्य
'प्रसाद' के नाटकों में हास्य का प्रायः अभाव ही है । कारण है, उस युग का वातावरण । गम्भीर, सांस्कृतिक, युद्ध-सम्बन्धी वातावरण में हास्य को कम स्थान रहता है । 'प्रसाद' जी के नाटक उथल-पुथल और सांस्कृतिक, संघर्ष के युग के हैं । ऐसे युग में हास-परिहास के लिए कम ही अवसर श्रा