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जयशंकर 'प्रसाद'
६३ जा सकते हैं और इनकी भावना, कथा, चरित्र-चित्रण, कार्य-व्यापार किसी को तनिक भी ठेस न पहुँचाकर । । ___'ध्र वस्वामिनी' अभिनय की दृष्टि से प्रसाद का सर्वश्रेष्ठ नाटक है। ये तीन अङ्क का नाटक है-प्रत्येक अङ्क में एक-एक दृश्य । संकलनत्रय का इसमें सबसे अधिक निर्वाह हुआ है। इसमें कार्य-व्यापार तीव्र है, कथाप्रवाह संबद्ध-संगठित है। इसका दृश्य-विधान अत्यन्त सरल है। तीन परदों से काम चल जाता है। घटनाएं बड़ी तीव्रता से घटती हैं । संघर्ष-विचारों
और घटनाओं का-बड़ी तीव्रता से होता चलता है। इस नाटक के अभिनय में पाठक की जिज्ञासा, कौतूहल, तन्मयता और रुचिपूर्ण आकर्षण अन्त तक बने रहते हैं और वे अन्त में ही शान्त होते हैं। 'ध्र वस्वामिनी' में 'प्रसाद' ने अभिनेयता का बहुत ध्यान रखा है। नाटक कहीं भी शिथिल नहीं, कहीं भी निर्बल नहीं, कहीं भी विरल नहीं । नाटक में केवल तीन अक्क ही, तीन दृश्य ही होने के कारण इनके निर्माण में तनिक भी कठिनता नहीं होती । अङ्कान्त में यवनिका का पतन होता है और जो समय यवनिका उठने तक मिलता है, उसमें विशाल से-विशाल दृश्य की रचना हो सकती है।
'स्कन्दगुप्त' 'प्रसाद' जी का सर्वश्रेष्ठ नाटक है। कार्य-व्यापार, चरित्रचित्रण, कथानक, गति, वातावरण, नाटकीय-शैली आदि सभी दृष्टियों से यह सभी नाटकों से अच्छा है । 'प्रसाद' जी स्वयं इससे सन्तुष्ट थे । इसका अभिनय समिष्ट रूप में बहुत ही प्रभावशाली, रसपूर्ण और रंजनकारी हो सकता है। पर इसके दृश्य-विधान को 'ध्रुव-स्वामिनी' के समान सफल नहीं कहा जा सकता। इसमें मंच-निर्देशक को पर्याप्त परिश्रम करना पड़ेगा। प्रथम अङ्क का दृश्य-विधान है-१-उज्जयिनी में स्कन्धावार, २-कुसुमपुर में कुमारगुप्त की परिषद्, ३-अनन्त देवी का सुसज्जित प्रकोष्ठ, ४अन्तःपुर का द्वार; ५–पथ और ६-अवन्ती का दुर्ग। इसमें पहले दो दृश्यों का आगे-पीछे निर्माण करना बहुत कठिन है। दोनों विशाल दृश्य हैं। दोनों के बीच कोई दृश्य होना चाहिए था, जिससे पहले दृश्य का सामान हटाने
और दूसरे दृश्य को सजाने का समय मिल जाता। तीसरा, चौथा, पाँचवाँ छठा-सभी दृश्य ठीक हैं । पहला दृश्य केवल कुछ सैनिकों और पहरेदारों को खड़ा करके स्कन्धावार बनाया जा सकता है । शेष सभी दृश्य बहुत ही सरल हैं। दूसरे अङ्क में कोई कठिनता नहीं । तीसरा अङ्क भी ठीक है--क्षिप्रा-तट २-बन्दी-गृह, ३-अवन्तिका का एक भाग, ४-पथ और ५-राज-सभा। तीसरे और पाँचवें दृश्य के बीच में पर्दा डालकर दृश्य निर्माण का समय मिल जाता