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हिन्दी नाटककार जस्य-कला बहुत ही सफल हुई है। तीनों नाटक जीवन के बाटोर संघर्ष मे भरे हैं। प्राम्भीक-अलका, भटार्क-स्कन्दगुप्त, विजया देवसेना, विकटघोपराज्य श्री और रामगुप्त चन्द्रगुप्न आदि संघर्ष नाक में रट हैं। नाटकीय कार्य-व्यापार को तीव्रता देने वाली घटनाए नाटकों में भरी पड़ी हैं।
देवसेना के वध के समय मातृगुप्त का यागमन, अवन्नी दुर्ग के पतन के समय स्कन्दगुप्त का प्रकट होना, देवकी की रक्षा के लिए भी तुरन्त फन्द. गुप्त का पहुँचना आदि नाटकीय घटनाए हैं। इनका चुनाव, दर्शकों के धड़कते हृदय को अनाशित रूप से अवलम्ब मिलना नाटकीय घटना की सबसे बड़ी सफलता होती है-ग्रहो इन घटनाओं में होता है। इसी प्रकार चन्द्रगुप्त' में अनेक अनाशित घटनाए है । जैसे कार्नेलिया की रक्षा के लिए चन्द्रगुपन का प्रवेश पर्वनेश्वर को प्रान्म-घात करने मे चाणक्य द्वारा रोका जाना, नन्द्रगुप्त के पास भी हुए बाध का ग्ल्यूकस द्वारा मारा जाना. श्रादि घटनाए नाटकीय कार्य-व्यापार को तीव्र करने वाली हैं।
भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार रजनंच पर युद्ध, मृत्यु गादि के दृश्य दिखाना वति है। आत्म-घात भी भारतीय दर्शन के अनुमार भीषण पाप समझा जाता है। पर 'प्रसाद' जी ने इनको स्वाधीनता पूर्वक दिग्वाया है, यह पश्चिम का ही प्रभाव है। 'ध्र वस्वामिनी' में शकगज और गमगुप्त का वध, 'चन्द्रगुप्त' में नन्द और पर्वते वर का वध और कल्याणी का आत्म-घात और 'स्कन्दगुप्त' में विजय की प्रान्म-हत्या --- सभी को सगमंच पर दिखाया गया है । युद्ध तो हर नाटक में रंगमंच पर ही होता है। मनका कुछ दिन के लिए पर्वतेश्वर की प्रेमिका होने का अभिनय करती है, यह भी पश्चिमी राष्ट्रीयता की प्रेरणा से निर्मित चारित्रिक गुण है।
'प्रसाद' के नाटकों का प्रारम्भ और अन्त उसकी विशेष कला का परिचायक है। सभी नाटकों का प्रारम्भ प्रभावशाली और कलापूर्ण है। 'अजातशत्र' के प्रारम्भ में ही अजातशत्र लुब्धक को फटकारना है- तो फि." मैं तुम्हारी चमड़ी उधेड़ता हूँ। समुद्र ला तो कोदा।" दर्शकों के सामने अजातशत्र अातंककारी के रूप में आता है --उमका चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 'चन्द्रगुप्त' में प्रथम दृश्य में ही प्रार्यावर्त की जर्जर अवस्था का पता चल जाता है। सिंहरण के शब्दों में -- "प्रावित का भविष्य लिखने के लिए कुचक्र और प्रतारणा की लेखनी और मसि प्रस्तुत हो रही है ।......भयानः विस्फोट होगा ।" इसमें सभी प्रमुख पात्रों का परिचय दर्शक को मिल जाता है। अलका, प्राम्भीक, सिंहरण, चन्द्रगुप्त, चाणक्प, सभी उपस्थित हैं। संघर्ष