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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
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तत्त्व भी है । सभी गुण होने पर भी यदि नाटक अभिनय की दृष्टि से असफल रहा तो वह पठनीय विशेषता तक ही रहेगा, सामाजिकों में न अधिक प्रचार पायगा, न उससे नाटकीय रुचि ही प्रेरित हो सकेगी । हरिश्चन्द्र के नाटकों को जब हम इस कसौटी पर कसते हैं तो उनके नाटक अधिक मात्रा में अभिनय के उपयुक्त ठहरते हैं । भारतेन्दु के जीवन काल में भी 'सत्य हरिश्चन्द्र' का अनेक बार अभिनय किया गया और के पश्चात् भी ।
रंगमंच के उपयुक्त होने न होने में दृश्य - विधान ही अनिवार्य और प्रमुख तत्व है, शेष भाषा, पद्यात्मकता, कार्य-व्यापार, चरित्र-चित्रण, संघर्ष आदिगौ । यदि दृश्य-विधान ठीक हुआ तो नाटक का अभिनय हो श्रवश्य सकता है, उसका प्रभाव पड़े या न पड़े- रस - सिद्धि हो या न हो । दृश्यविधान के पश्चात् कार्य - व्यापार, कथा की तीव्रता और चरित्र चित्रण की बारी आती है। ये सभी तत्त्व उचित मात्रा में हुए, तो नाटक का सफल और रस-साधक अभिनय हो जायगा ।
भारतेन्दु के सभी नाटकों का दृश्य-विधान बहुत सरल है । 'विद्या सुन्दर' में तीन अंक हैं और प्रत्येक में चार, तीन और तीन के क्रम से गर्भक या दृश्य । पहला "क वर्धमान का राजभवन, वर्धमान का उद्यान, हीरा मालिन का घर तथा विद्या (वर्धमान की राजकुमारी) का भवन | दूसरा अंक-विद्या का भवन, विद्या का भवन, विद्या का भवन । तीसरा अंकराजमार्ग, विद्या का भवन, राज भवन । इन तीनों अंकों के निर्माण में तनिक भी कठिनाई नहीं । इस नाटक में कौतूहल भी है— - श्रचानक सुरंग से सुन्दर का प्रकट होना विद्या के भवन में । 'वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति' में चार अंक है - अंक ही दृश्य हैं । इससे सरल तो दृश्य-विधान हो ही नहीं सकता । यह प्रहसन है, इसलिए सामाजिक इसमें पूर्ण रसानुभूति करेंगे ।
'अन्धेर नगरी' और 'भारत दुर्दशा' में भी ६ श्रंक हैं । श्रंक ही दृश्य हैं। इनका निर्माण तो सरलता और सादगी में आदर्श है । 'नील देवी' में नौ दृश्य हैं— हिमगिरि का शिखर - अप्सरात्रों का गान, युद्ध का डेरा - अब दुश्शरीफ का दरबार, पहाड़ की तराई - सूर्यदेव - नीलदेवी का दरबार, सरायः चपरगहू पीकदानी की बातचीत, सूर्यदेव के डेरे का बाहरी भाग, बदुश्शरीफ का खेमा, कैदखाना - सूर्यदेव एक पिंजरे में बन्द, मैदान, सूर्यदेव का डेरा और अबदुश्शरीफ का दरबार । दृश्यों के क्रम को देखने से स्पष्ट मालूम होता है कि यह विधान बहुत ही सरल है । एक ही दृश्य से कई का भी काम किया जा सकता है। युद्ध के डेरे या पढ़ाव का दृश्य तनिक