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हिन्दी के नाटककार
___ 'श्रीमतो मञ्जरी' की भाषा प्रौढ, चलती हुई, प्रभावशाली और सबल है। पद्यात्मक संवाद प्रचुर मात्रा में हैं ; पर वे पुष्ट और प्रभावशाली है । 'श्रीमती मञ्जरी' की अपने समय काफी धूम रही और यह छोटे-छोटे नगरों में भी शौकिया नाटक-समाजों द्वारा भी खेला गया था। गुप्त जी के नाटकों का समय सन् १९२२ से १६३६ तक माना जा सकता है। आनन्दप्रसाद खत्री
खत्री महोदय बाल्यकाल से ही अभिनय की ओर रुचि रखते थे। वयस्क होने पर इनका मुकाव फिल्मी जीवन की ओर हुआ। उन दिनों अवाकूफिल्में बनती थीं। यह एक सिनेमा-भवन के मैनेजर के रूप में इस व्यवसाय में प्रविष्ट हुए । अभिनय की ओर तो रुचि थी ही, यह नाटकों में अभिनय भी करने लगे। काशी ( अपने घर ) में रहते हुए ही इन्होंने 'वीर अभिमन्यु' में अर्जुन का और 'किंगलीअर' में लोअर का बड़ा सुन्दर अभिनय किया। इस रूप में भी यह सामाजिकों द्वारा अत्यन्त पसन्द किये गए ; पर पागल का अभिनय करने में तो इनकी ख्याति बहुत ही बढ़ गई। सफल अभिनेता होने के बाद इनका ध्यान नाटक-लेखन की ओर भी गया और इन्होंने 'भक्त सुदामा', 'ध्र वलीला', 'परीक्षित', 'गौतम बुद्ध,' तथा 'कृष्णलीला श्रादि नाटक लिखे।
इनके नाटकों की भाषा सशक्त. प्रोड़, प्रभावशाली और नाटकोचित होती है । उस समय प्रवृत्ति थी, गद्य का तुकांत होना, यह प्रवृत्ति इनके नाटकों में भी पाई जाती है। पारसी-नाटकों के समान चमत्कारिता भी इनके नाटकों में है। कथा वस्तु का गठन अच्छा है। चरित्र-चित्रण का ध्यान भी इन्होंने रखा है। रचना-काल १९१२ से १६३० तक है। शिवरामदास गुप्त
रङ्गमंच पर इनका प्रवेश सगीत-निर्देशक के रूप में हुअा। इन्होंने संगीत में प्रसिद्धि प्राप्त करके संचालक के रूप में भी कार्य किया और अभिनेता भी बन गए । रङ्गमंच-नाटक भी इन्होंने पर्याप्त संख्या में लिखे । रङ्गमंचीय नाटककारों में श्री शिवरामदास गुप्त सर्वनोमुखी प्रतिभा-सम्पन्न थे। रङ्गमंचसम्बन्धी सभी कार्यों में प्रवीण और प्रसिद्ध, इसके अतिरिक्त इन्होंने नाटक तथा उपन्याप आदि प्रकाशित करने के लिए एक प्रकाशन-संस्था 'उपन्यास बहार आफिस' स्थापित किया। इससे अनेक नाटकों का प्रकाशन इन्होंने किया । अब भी इस संख्या से अनेक नाटक और उपन्यास प्रकाशित होते रहते हैं।