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फुटकर
कार के रूप में प्रकट हुए। अाज तक इसी के बल पर वह हिन्दी-नाटकसाहित्य के इतिहास में उल्लेखनीय व्यक्तित्व हैं। 'प्रताप प्रतिज्ञा' सामन्ती युग के वीरता, देश-प्रेम, बलिदान, शौर्य और कुलाभिमान का सफल चित्र है। लेखक ने कहानी को बहुत सशक्त, गुम्फित, गतिशील और प्रभावशाली बनाने में अत्यन्त सफलता प्राप की है । हृदय को छूने वाली साथ ही नाटकीय महत्त्व को प्रकट करने वाली घटनाओं की इस नाटक में शृङ्खला है। चरित्रों में वही सामन्ती युग का अहं, वही आदर्शवादी नैतिकता, वही बलिदान की निस्वार्थ भावना है।
शक्तसिंह का मातृ-द्वष और अंत में प्रतापसिंह के चरणों पर गिरकर पश्चाताप करना बहुत ही हृदयद्रावक घटना है। दोनों भाइयों के पारस्परिक वैमनस्य की आग बुझाने के लिए कुल-पुरोहित की आत्म-हत्या एक अलौकिक बलिदान है। मेवाड़ छोड़ते हुए भामाशाह द्वारा अपनी समस्त सम्पत्ति का प्रताप के चरणों में समर्पण दिव्य त्याग है। नाटक में घटनाओं का चुनाव बहुत प्रभावशाली और कार्य-व्यापार को बढ़ाने वाला है। स्वच्छ, शुद्ध, सशक्त और अवसरोचित भाषा का व्यवहार है। तत्कालीन नाटकों में हम इस प्रकार के गुण कम ही पाते हैं। राष्ट्रीय चेतना का प्रभाव स्पष्ट है । प्रताप राज्य-सिंहासन ग्रहण करते हुए प्रतिज्ञा करता है, "भवानी तू साक्षी है । जनता जनार्दन ने आज मुझे अपना सेवक चुना है। मै अाज तुझे छूकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि जन्म-भर मातृभूमि मेवाड़ के हित में तन-मन-धन सर्वस्व अर्पण करने से मुह न मोडूंगा । जब तक चित्तौड़ का उद्धार न कर लू*गा, सत्य कहता हूँ-कुटी में रहूँगा, पत्तल में खाऊँगा, और तृणों पर सोऊँगा।"
इसका श्रारम्भ और अंत दोनों ही नाटकीय दृष्टि से बहुत प्रभावशाली और उत्तम हैं। 'मिलिन्द' जी ने दूसरा नाटक 'समर्पण' लिखकर सामाजिक नाटक लिखने की ओर पग बढ़ाया । यह १९५० ई० में प्रकाशित हुआ है। इसमें कुछ युवक-युवतियाँ जन-सेवा का व्रत लेते हैं और विवाह न करने को प्रतिज्ञा करते हैं । नाटक में विवाह-समस्या पर अच्छी बहस की गई है। परिस्थितिवश माध्वी-विनोद, राजेन्द्रसिंह-माया का विवाह हो जाता है । पर इला और नवीन अंत तक दृढ़ता दिखाते हैं। पर अंत में नवीन अपने हृदय के नीचे बहती प्रेम-सरिता की लहरों को संभाल नहीं पाता और इला से अपने प्रेम का प्रकाशन कर देता है, "वही चिन्तन अन्तर्द्वन्द्व जो आदि काल से मानव के हृदय में आदर्श और प्रेम के बीच, साधना और स्नेह के बीच, होता आया है। मेरी जगह यदि कोई और नवयुवक होता तो कभी का तुमसे