________________
:१२:
संक्रान्ति-काल बद्रीनाथ भट्ट
भट्टजी हिन्दी के प्रतिभाशाली पत्रकार और विख्यात लेखक थे। प्रसाद जी से पहले आपने अपनी प्रसन्न और विनोहा लेखनी मे सफल और रसपूर्ण रचनाएं की। भट्टजी के सामने बहुत स्वस्थ और कलापूर्ण नाटकसाहित्य नहीं था, इसलिए नाट्य-कजा का इतना विकास उनके नाटकों में भले ही न मिले, जितना बाद में आने वाले लेवकों को रचनाओं में मिलता है; पर ताकालिक नाट्य-विकास की दृष्टि से देखा जाय, तो उनके नाटक अत्यन्त सफल और सुन्दर हैं । भट्ट जी ने पौराणिक, ऐतिहासिक काल से कथा वस्तु लेकर तो अपने नाटकों की रचना की ही, वर्तमान जीवन से सामग्री लेकर भी उन्होंने सुन्दर और उच्चकोटि के प्रहसन लिग्वे । 'चुङ्गी की उम्मीदवारी' नामक प्रहमन सन् १९१२ ई० में प्रकाशित हुआ। 'कुरु-वन दहन' और 'चन्द्रगुप्त' १९१५ में निकले, 'वेन-चरित' १९२१, 'तुलसीदास' १६२५, 'दुर्गावती' १६२६ और 'मिस अमेरिकन' १६२८ ई० में प्रकाशित हुए। ___ 'वेन-चरित' और 'कुरु-वन-दहन' पौराणिक नाटक हैं। 'चन्द्रगुप्त', 'तुलसीदास', और 'दुर्गावती' ऐनिहासिक और 'चुङ्गी की उम्मीदवारी' तथा 'मिस अमेरिकन' प्रहसन ।
'वेन-चरित' में राजा वेन के अत्याचारों का वर्णन है। 'कुरु-बन-दहन' 'वेणी-संहार' की कथा है । पर भट्टजी ने इस संस्कृत को कथा से अपने नाटक को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र कर रखा है । इसमें संस्कृत-नाट्य-कला के प्रभाव से भट्ट जी ने अपने को पूर्ण रूप से मुक्त कर लिया है। और अंग्रेजी ढङ्ग के प्रकों में इसे बाँटा गया है। 'वन्द्रगुप' में चाणक्य, राक्षस, चन्द्रगुप्त -सभी ऐतिहासिक पात्र हैं, पर न तो उनका चरित्र-चित्रण ही ठीक हुआ, न उनमें