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उदयशंकर भट्ट
१६१ 'विक्रमा देत्य' की भाषा 'दाहर' में विकसित होती गई है। वह अपेक्षाकृत सरल और गतिशील भी होती गई है । 'सगर-विजय' में वह काफी स्वच्छ होकर पाई है । 'कमला' में भाषा नाटकोचित चलती हुई और चुस्त है। 'कमला' में देवनारायण कहता है , “यही तो बुरी आदत है। मैं तो संसार में सदा क्रियाशील बना रहना पसन्द करता है। चाय में वे सब गुण मौजूद हैं। मैं पुराने विचारों का होते हुए इसकी खूबियों को समझता हूँ । कमला, परन्तु जीवन भी क्या पागलपन है। अरे, तो क्या तुम एक प्याला भी न लोगी?" 'कमला' और 'विक्रमादित्य' की भाषा की तुलना करते हुए आश्चर्यमय प्रसन्नता होती है । 'कमला' में भट्ट जी की भाषा का प्रशंसनीय विकास है।
'मुक्ति-पथ' और 'शक-विजय' की भाषा ने फिर कुछ गम्भीर रूप धारण किया है। पर यह सर्वथा युग और वातावरण के अनुसार है। दोनों नाटक प्राचीन काल के हैं। जैन और बौद्ध काल का वातावरण अवश्य भाषा को गम्भीर रूप दे देगा । इन दोनों नाटकों की भाषा गम्भीर होते हुए भी न तो संस्कृत के अस्वाभाविक बोझ से लदी है और न अस्वास्थ्यकर अलङ्कारों की भीड़ में दबी है। वह स्वच्छ और भाव-प्रकाशन में सफल है। 'शक-विजय' में गन्धर्वसेन कहता है, "जो लहर तट तक टकराकर उसके कगारों को तोड़ देती है, उसी का प्रभाव रहता है ; शेष अनाम-अज्ञेय होकर नष्ट हो जाती है। फिर हमारा कार्य जीवन के प्रभाव को स्थिर और गतिमान बनाये रखना है। इस सिंह को मारकर कानन को निर्भय बना देने के अतिरिक्त मैने एक क्रूर के शासन को भी नष्ट कर दिया है। क्या हम भी एकतन्त्र सत्ता नष्ट करके यौधेयों के सामने गणतन्त्र नहीं बना सकते ?" ___ संवादों का विस्तार भी लगातार कम होता गया है। 'विक्रमादित्य' में तीन-साढ़े तीन पृष्ठ तक के स्वगत-संवाद हैं। डेढ़-दो पृष्ठ के संवादों से नाटक भरा पड़ा है। 'दाहर' में विस्तार कम हो गया है। बड़े-से-बड़ा संवाद डेढ़ पृष्ठ का ही रह गया है। 'सगर-विजय' में संवाद विस्तार फिर पैर फैलाता हुश्रा दीखता हैं। बर्हि और विशालाक्षी के स्वगत और संवाद ढ़ाई पृष्ठ तक बढ़ गए है। 'कमला' में विस्तार की दृष्टि से भी नाटकोचित संवाद हैं। शायद ही कोई संवाद एक पृष्ठ तक गया है। 'मुक्ति-पथ' और 'शक-विजय' में भी संवाद संक्षिप्त और गतिशील हैं। पूरे नाटक में एकदो संवाद ही एक पृष्ठ के होंगे। यदि कहीं काल काचार्य ( शक-विजय) का संवाद एक पृष्ठ तक गया भी है तो वह किसी अन्तर्द्वन्द्व और भावावेग को प्रकट करता है-अस्वाभाविक नहीं मालूम होता। संवादों और नाटकीयता