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हिन्दी के नाटककार कहा जा सकता, उसके जीवन में कितना महत्त्व है, इसका संकेत अवश्य है। माया एक रूप बेबने वाली युवती है, फिर भी उसके मानवीय गुणों पर मस्तक नत होता है । ज्योत्स्ना पति के आतंक की छाया में अपने रूप का लाभ उठाती है- दोनों नारी ही प्रकाश के बुझते दीपक में स्नेह ढाल सकी और उन्होंने उसकी रक्षा की। छाया आस्था, श्रद्धा और श्रात्म-विश्वास की प्रतिमा है । इस नाटक में प्रेमी जी परिस्थिति की चपेटों से श्राहत मनुष्य के घावों पर सहानुभूति का शीतल-अमृत अालेप लगाते हुए मिलते हैं। __ 'छाया' में आर्थिक शोषण और विषमता का जो घातक स्वरूप व्यक्ति के जीवन का रक्त चूमते हुए दिखाया गया है, 'बन्धन' में वह और भी अत्यन्त व्यापक बनकर आया है-यह सामाजिक अभिशाप बनकर उपस्थित हुआ है। विषमता का बहुत ही भयंकर रूप नाटक में उपस्थित किया गया है । पैसे के बल पर नारी का सतीत्व भी खरीदा जा सकता है, यह एक कैदी के वार्तालाप से स्पष्ट है। आर्थिक विषमता समाज की सबसे कठिन
और उलझनभरी समस्या है। विश्व के बड़े-बड़े अर्थ-शास्त्र-विशारद इसे हल करने में सिर खपा रहे हैं-साम्यवाद का आविभाव भी इसी की देन है। प्रेमी जी ने 'बंधन' में इसी श्रार्थिक शोषण का चित्र उपस्थित किया है-इसी विषमता की चक्की में पिसते हुए समाज की कराहों को कला की बाँसुरी के सुरों में उन्होंने भरा है । सामाजिक जीवन की आर्थिक समस्या को सुलझाने का प्रयास ही 'बंधन' का प्रमुख उद्देश्य है। मिल-मालिक और मजूर का संघर्ष इस नाटक की कथावस्तु है। ' खजांचीराम मिल का मालिक है। सभी शोषक मालिकों के समान वह भी मजूरों की मांग पूरी नहीं करना चाहता । युद्ध के कारण खर्च बढ़ गया है, वह न तो उनका वेतन बढ़ाता है, और न मँहगाई भत्ता श्रादि ही देता है। मजूर विवश होकर हड़ताल कर देते हैं और लाठी-चार्ज श्रादि होता है । मोहन (मजूरों का नेता) की समझदारी से संघर्ष चलता रहता है। गाँधीवादी युग में यह नाटक लिखा गया है, इसलिए गांधी-दर्शन का आधार ही समस्या के हल करने का साधन बनाया गया है। सरला कहती है, "सत्याग्रह शत्रु का नाश या नुकसान नहीं करता । वह तो उसकी मरी हुई आत्मा को जीवित करता है । मजदूरों का कष्ट सहन एक दिन रायसाहब (खजांचीराम) के हृदय म प्रेम का समुद्र लहरा देगा।" ___ समस्या का हल गांधीवादी तरीकों से किया गया है। मनूरों के कष्टसहन और अहिंसात्मक रहने तथा मोहन के श्रादर्श चरित्र, उसके अभूतपूर्व