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गोविन्दवल्लभ पन्त
१०५ इसी का प्रकार परिवर्तन अवीक्षित के चरित्र में भी आता है। पहले वह वैशालिनी को प्यार करता है, उसका हरण करता है । पर धीरे-धीरे ज्यों-ज्यों वैशालिली में उसकी सेवा-शुश्रषा करते हुए प्रेम का विकास होता जाता है, उसमें एक मनोवैज्ञानिक परिवर्तन होता जाता है और अंत में जब उसका पिता करंघम, वैशालिनी के पिता विशाल की सेना को परास्त करके उसके साथ श्रवीक्षित के पास पाता है, तो उसके हृदय में अपनी कायरता की दैन्य भावना जोर पकड़ जाती है। वह कहता है, "नहीं पिताजी, धृष्टता क्षमा हो । में वीर कुल-कलंक हूँ-स्वयं स्त्री हूँ । स्त्री का स्त्री के साथ कैसे विवाह हो सरता है ? जो प्रतिज्ञा वैशालिनी के ग्रहण से प्रारम्भ हुई थी, वह आज मेरे आजन्म आविवाहित रहने पर समाप्त हुई। यही मेरी कायरता का प्रायश्चित्त है।"
इसी प्रकार का चारित्रिक परिवर्तन उदयन के चरित्र में भी पाया जाता है। उदयन पद्मावती को अपने हृदय में प्रतिष्ठित किये हैं। पद्मावती के चरण तक की गति उसके सबसे प्रिय गीत के साथ मिलकर स्मृति-मंदिर में हर समय उपस्थित रहती है। मांगधिनी जब उदयन को पद्मावती के विरुद्ध भड़काती है तो वह कह देता है, "मेरे इस मधुर गीत में तुम्हारे में सभी स्वर विवादी हैं।" पर धीरे-धीरे उसके हृदय में सन्देह का सॉप वास करने लगता है। मांगधिनी की धूर्तता से उसका हृदय बदल जाता है। उसे पद्मावती के चरित्र पर भी सन्देह होने लगता है । हस्तीस्कंध वीणा से जब साँप निकलता है, मागंधिनी उसे बहका देती है कि यह पद्मावती ने रखा है और उसके हृदय में उसके तथा अमिताभ के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती है । वह पद्मावती का वध करने के लिए वाण छोड़ता है। वाण चूक जाता है तो पद्मावती समझती है, उसे क्षमा कर दिया गया । तब उदयन अपने हृदय की घृणा यकट करता है, "यह तीर छटने के पश्चात् यदि मेरे हृदय की ज्वाला शीतल पड़ जायगी।" और वह पद्मावती को फिर लक्ष्य करके तीर छोड़ता है। इतने ही में मालिन श्राकर सारा रहस्य खोल देती है। अमिताभ भी तोर लिये उपस्थित होते हैं और दोनों उसके चरणों में नत मस्तक हो जाते हैं
चरित्र-विकास की दृष्टि से 'राजमुकुट' सबसे कमजोर नाटक है । तलवारों की झनझनाहट में, सामन्ती शौर्य के जोश में, मारों-मारों की पुकार
और उछल-कूद में चरित्र का विकास हो ही नहीं पाया। हाँ, शीतल सेना का चरित्र उल्लेखनीय है।