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और यह मतान्तरों की लड़ाई तो वीतराग देव केवल ज्ञानी मालकों के बैठे न निवड़ी जमालीवत् । और अब तो रांड फौज है क्योंकि पूर्वोक्त मालक सिरपै नहीं है सो मतान्तरों की लड़ाई क्या निवड़ेगी परन्तु तदापि बुद्धिमानों को चाहिये कि स्वआत्म परआत्म हित, कार रूप धर्म में पुरुषार्थ करें क्योंकि तीर्थकर देव दयालु पुरुषों का निरवद्य मार्ग है यथा सूत्र सूयगड़ाङ्ग प्रथम श्रुत स्कन्ध अध्ययन ११ वां गाथा १० तथा ११ वीं । एयंखू नाणीणो सारं, जंन हिंसई किंचणं अहिंसा समयंचेव, एतावतं वियाणिया॥१॥उदं अहेयं तिरियंच, जेकेइ तस्सथावरा, सब्वत्थ विरतिं कुजा संति निव्वाण माहियं ॥ २॥ भावार्थ इस निश्चयज्ञाननों सार जो न हणे जीवनाप्राण