________________
( ६७ )
--
-
-
-
बुद्धिमान साधु जहां२ ग्राम नगर में जाय नहा२ दशा का उपदेश को यथा उतराध्ययन अध्ययन १०वें गाथा३६वीं में “बुद्रेपरिनेबुडे चरे गाम गए नगरेव संजए, संति मग्गंच बृहए, समयं गोयम माप्य मापरा ॥ १ ॥ । अर्थ वुल्तत्व को जान शीतल स्वभाव से विचरे मंयम ने विषे ते संयति साधु गा० ग्राम में गये थके तैसे ही नगर में गये हुए अर्थात् ग्राम में जाय तथा नगर में जाय तहां सं० दया मार्ग अर्थात् ६ पट् काय रक्षा रूप धर (च) पद पूरणार्थ हे वूक है अर्थात् दया प्रगट करे । श्री महावीर स्वामी कहते भये कि हे गौतमजी दया मार्ग के उपदेश देने में स० सनय मात्र अर्थात् अल्पकाल मात्र मी प्रमाद अर्थात् आलस्य न करना