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कौन सिखाता है फिर यौवन में कामिनी से तथा पति के सङ्ग काम, क्रीड़ा करनी तथा कटाक्ष युक्त नयनों से देखना और मन्द २ हास पूर्वक मुस्कराना इत्यादि सब कर्म किस के माई, बाप सिखाते हैं यह प्रबृत्ति तो स्वतः ही आजाती. है क्योंकि यह उदय भाव है। इस कारण इन दोनों पूर्वोक्त भावोंका एकसा हेतु कहने वाला विरुद्धवाची है परन्तु यह भाव तो निष्पक्ष दृष्टि से सम होगा, और पक्ष के नशे में बड़बड़ाट करने के लिये तो राह अनेक हैं । अब हम एक प्रश्न करते हैं। कि जब तक गुरुका उपदेश और शास्त्र ज्ञान नहीं होगा, तब तक मृत्ति के देखने से ज्ञान | और वैराग्य कैसे होगा और ज्ञान के हुए पीछे मूर्ति से क्याप्रयोजन रहता है ? यथा दृष्टान्त
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