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पृष्ठ पंक्ति अशुद्धि
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રહ
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॥ अशुद्धि शुद्ध पत्रम् ||
शुद्धि
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तवय भाव
मंर्वगा
चोपट सिद्धि विधारक
सक्ता
प्रचीन
लिखा
दासी
समान
تمد
फिर भी
स्थावर
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करें ता
विचारने देखने काम क्षयोपम
माप्य मापना
तत्व को समित
को मानते जीता
तव पसाव संवेगी
चोपड़े
सद्धि
वधारक
सक्ती
प्राचीन
लिखे
दिक्षा
समत
दप्ढ
फिर और भी स्थावरा की
॥ १२ ॥ करे और जो पक्षम को मुख करके पूजे दो विचरने देखने से काम क्षयोपशम
माष्पमायप
तत्व के
सचित को पूजना मानने जीत