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ही शूरवीर रहगया और घणे साधु शिथिलाचारी और भ्रष्ट होगये क्योंकि निर्दोष आहार पानी मिलना मुशकिल होगया और क्षुधा के न सहने करके आजीविका के निमित्त ज्योतिष वैदंगीआदिपरूपने लगे और चैत्य स्थापन मावलंबी यति होगये जैसे कि यह मेरा गच्छका मंदिर है अथवा यह मेरा उपाश्रय है इत्यादि यथासूत्र चेइयं ठपावेइ दबाहारीणो मुणी भविस्सइ लोभेण मालारोहण देउल उवहाण उद्यमण जिण बिम्ब पइठावण विहिउ माइएहिवहवे तवयभाव पया इस्संति अविहेपंथे पडिस्संति इत्यादि (सूत्र) अस्यार्थः __ मूर्ति की स्थापना करावेंगे द्रव्य धारी मुनी घणे ही होजावेंगे, लोभ करके माला रोपण अर्थात् मूर्तिके कंठमें फूलों की माला