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* अथ प्रथमभाग प्रारम्भः *
दोहा - पंच प्रमिष्टपैनमुं, सिद्धि साधक सुखदाय ।
तिस प्रसाद प्रकट करूं, कुछक न्याय अन्याय ॥ १ अथ जैन तत्वादर्श - ग्रन्थ में जो २ विरुद्ध लिखे हैं उनमें कितनेक विरुद्ध यहां लिखते हैं आत्माराम संवेगी ने जैन तत्वादर्श ग्रन्थ छपवाया है उसमें त्यागी पुरुष साधुओं को इंडिये (नाम) संज्ञा से कहकर बहुत निन्दा लिखी है सो उसको हम उत्तर देते हैं कि हे भाई! तुमको यह भी खबर है कि इंडिये किस रीति से कहाये हैं, सोई हम इंडिये कहाने का कारण लिखते हैं, जैसाकि अनुमान १७१८के साल में सूरत नगर के निवासी जाति के श्रीमाल एक लवजी नाम साहूकार ने