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इस पाठ के पद २८ संपदा २८ दडण्क७ गुरु अक्षर २८ लघु अक्षर २३२ एवं सर्व २६०।
सो इस पाठ को ध्याना रूढ़ होके मन में स्मरण करे फिर “नमो अरिहंत्ताणं" यह शब्द प्रकट कहके ध्यान खोलले और फिर ध्यान खोलके इसी पाठ को प्रकट कहे ॥
और फिर देवगुरु को पूर्वक नमस्कार करके समायक लेने की आज्ञा लेवे और फिर समायक लेने का यह पाठ पढ़े ॥ यथा करेमि भंते समाइयं सावज्जजोगं पचक्खामी जाव निअमं महूरत १ तथा २ पज्जुवासामि दुविहंति विहेणं नकरेमि नकारवेमि मणसा वायसा कायसा तास्सभंते पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं बोसिरामी ॥ ५ ॥ इस पाठ से सामाजिक वंत होकर फिर
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