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( १९१. )
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४ चौथे देव गति से आकर मनुष्य हुआ होय तिस के छः लक्षणे । १ सत्यवादी; दृढ़ धर्मी होय । २ देव गुरु का भक्त होय । ३ धनवान होय । ४ रूपवान होय । ५ पंडित होय । ६ पण्डितं से प्रीति होय ॥ सो इन चार गति की गति आगति रूप भव भ्रमण से उदासीन होकर स्वात्म हित कांक्षी, दुर्गति पड़ने के कर्मों से निवृत्त होय, परन्तु यह यादरखे कि किसी के निमित्त नहीं है अपनी आत्मा के निमित्त ही है जैसे किसी पुरुष ने अपने कोठे में कांटे बखेर लिये तो फिर वह कांटे उसी पुरुष को भीतर जाते आते को दहेंगे यानि दुःख देंगे और किसी को क्या अफसोस, तथा किसी पुरुष ने भीतर बड़ के अफीम खाली कि मुझे कोई अफीम ||
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