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________________ [प्रथम भाग ज्ञान और कर्म। ७४ mom वायु प्रचुर मात्रामें रहता है। अतएव वह वायु जैसी खाद देनेसे वृक्ष-बेल आदि उद्भिदोंमें प्रचुर मात्रामें प्रवेश कर सके और ठहर सके, वैसी ही खाद देनी चाहिए । अभीतक यह नहीं जाना गया है कि और अन्य धातुएँ मूलमें एक पदार्थसे उत्पन्न हैं कि नहीं। इसी कारण अभीतक यह नहीं कहा जा सकता कि और धातुओंसे सोना बनाया जा सकता है या नहीं। रसायनशास्त्रके अनुसार सब प्रकारके जड़ पदार्थ अन्यून ७० प्रकारके जुदे जुदे मौलिक पदार्थोमेंसे एक या एकसे अधिक पदार्थोंके मेलसे उत्पन्न हुए हैं, और सुवर्ण तथा अन्यान्य सब धातुएँ एक एक मौलिक पदार्थ हैं । यह बात अगर ठीक है तो दूसरी धातुका सोना नहीं बन सकता। किन्तु इस समय कोई कोई रसायनशास्त्रके ज्ञाता पण्डित (१) ऐसा आभास देते हैं कि हम जिन पदार्थोंको भिन्न भिन्न मौलिक पदार्थ कहते हैं, वे परस्पर एकदम इतने अलग नहीं हैं कि एकको दूसरेका रूप देना असंभव कहा जा सके। मगर अबतक ऐसे परिवर्तनको कोई साध्य नहीं कह सका है। सभी मौलिक पदार्थ अपने अपने प्रकारके परमाणुओंकी समष्टि हैं। यही रसायनशास्त्र द्वारा अनुमोदित तत्त्व है। किन्तु कोई कोई वैज्ञानिक पण्डित ऐसा आभास देते हैं कि परमाणु भी व्योम या ईथरकी चक्कर लगा रही केन्द्रसमष्टि हैं। बहिर्जगत्के जड़ पदार्थोकी सब क्रियाओंपर नजर डालनेसे माध्याकर्षण क्रिया, रासायनिक आकर्षण क्रिया, ताप-घटित क्रिया, प्रकाश-घटित क्रिया, वैद्युतिक क्रिया आदि अनेक प्रकारकी विचित्र क्रियाएँ देख पड़ती हैं, और पहले वे परस्पर विभिन्न ही जान पड़ती हैं। किन्तु वैज्ञानिक पण्डित इन सब क्रियाओंकी एकता स्थापित करनेके लिए बहुत कुछ प्रयास कर रहे हैं, और उनकी चेष्टा कुछ कुछ सफल भी हुई है। यह बात बहुत दिनोंसे लोग जानते हैं कि ताप जो है वह गति या गतिका वेग रोकनेसे उत्पन्न होता है। अरणिकाष्ठको घिसकर या चकमक पत्थरमें लोहा ठोककर आग निकालना इस बातके दृष्टान्त हैं। साठ वर्ष हुए मेञ्चेस्टर नगरके डाक्टर जूलने जाँच करके यह निर्णय (१) जैसे Sir William Ramsay. विशेष जानना हो तो इन्हीं साहबका ssays Biographical and Chemical, P. 191 देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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