________________
पाँचवाँ अध्याय ]
राजनीतिसिद्ध कर्म ।
३३९
तड़क-भड़कको पसंद करती है, आदर करनेसे सिर चढ़ती है, और भय दिखानेसे वशीभूत होती है। अतएव उसे कावूमें रखनेके लिए सौम्यमूर्तिकी अपेक्षा उग्रमूर्ति दिखानाही अधिकतर प्रयोजनीय है । और पूर्वीय जातियोंकी बात मैं नहीं कहता, किन्तु हिन्दूजातिके सम्बन्धमें यह धारणा बिल्कुलही भ्रान्ति-मूलक है, और यह बात अँगरेज-राजपुरुषोंको विदित होनेकी अत्यन्त आवश्यकता है। क्योंकि अनेक समय ऐसा होता है कि यही श्रम उनके साधु उद्देश्यको भी सिद्ध नहीं होने देता । जड़-जगत्की और विषयसुखकी अनित्यता पर जिस जातिको अटल विश्वास है, वह कभी आडम्बरप्रिय नहीं हो सकती। जिस जातिके आदर्शपुरुष महाराज रामचन्द्रने प्रजारञ्जनमात्रके लिए अपनी प्रियतमा रानी सीतादेवीको बन भेजकर अपनी प्रजावत्सलताका प्रमाण दिया था, उस जातिको बशीभूत करनेके लिए भय दिखानेकी अपेक्षा प्रीति दिखाना सौगुना अधिक फल देनेवाला है, और बुद्धिमान् व्यक्तिमात्र इस बातको सहज ही समझ सकते हैं । हिन्दूलोग जानते हैं-मुनीनाञ्च मतिभ्रमः, मुनियोंसे भी भूल हो जाती है। हिन्दुओंके निकट राजा भयका नहीं, भक्तिका पात्र है । अँगरेजोंके बाहुबलकी अपेक्षा उनकी न्यायपरताही हिन्दुओंकी दृष्टिमें अधिकतर गौरवकी चीज है। अतएव भ्रम स्वीकार कर लेनेसे या असावधानताकृत अविहित कार्यके संशोधनसे हिन्दुओंके निकट अँगरेज राजपुरुषोंका गौरव घटेगा नहीं, बल्कि बढ़ जायगा। उधर भारतवासियोंमें भी बहुत लोगोंका यह खयाल है कि अँगरेज एक बलका दर्प रखनेवाली जाति हैं, अतएव अँगरेजोंके निकट न्यायकी अपेक्षा बलका गौरव अधिक है। साथही उनकी यह भी धारणा है कि अँगरेज लोग खुद स्पष्टवादी होते हैं, इस लिए अँगरेज राजपुरुषोंके दोष स्पष्ट शब्दोंमें दिखा देनेसे कोई हानि नहीं है। किन्तु ऐसा खयाल करना हमारा भ्रम है। अँगरेज लोग प्रकटरूपसे दैहिक बलका चाहे जितना गौरव क्यों न करें, वे नैतिक बलकी श्रेष्ठताको मानते हैं । जो मनुष्य नैतिक बलमें प्रबल है उसे किसीके भी निकट पराभव नहीं स्वीकार करना होगा । अतएव हम नैतिकबलमें प्रबल होंगे तो न्याय-परायण अँगरेज अवश्यही हमारा सन्मान करेंगे। और, स्पष्टवादिता गुणके सम्बन्धमें स्मरण रखना कर्तव्य है कि जो व्यक्ति पद मर्यादाके अनुसार जैसा और जितना संमान पानेके योग्य है, उसके