________________
३०६
ज्ञान और कर्म।
[द्वितीय भाग
किसी पक्षके स्वार्थत्यागका प्रयोजन नहीं है, वह संभवपर भी नहीं है। किन्तु दोनोंहीको उस स्वार्थका अनुगामी होना चाहिए, जो असली न्यायसंगत और इसी लिए स्थायी होता है, और जिसके साथ न्याय-संगत परार्थका कोई विरोध नहीं है । उसी न्यायपरताका बोध धनी और मजदूर दोनोंके हृदयमें पैदा हुए बिना, बाहरके नियमोंके द्वारा, उनके विरोधका निवृत्त होना कभी संभव नहीं है।
अतएव दोनों पक्षके और जनसाधारणके हितके लिए, धनी और मजदूरोंकी अच्छी आमदनीके लिए, कार्यनिपुणताका शिक्षा जैले आवश्यक है, वैसेही अनुचित स्वार्थका संयम और स्वार्थ-परार्थका सामञ्जस्य करनेके लिए नीति-शिक्षा भी आवश्यक है।
हड़ताल। धनीलोगोंको सुविधाके अनुसार नियम बनानेको विवश करनेके लिए मजदूर लोग समय समय पर हड़ताल डाल दिया करते हैं, अर्थात् सब मिलकर प्रतिज्ञा करके काम करना बंद कर देते हैं । इस तरहकी हड़ताल न्याय-संगत है या नहीं, इस प्रश्नका उत्तर संक्षेपमें यह है___ अगर सभी मजदूर अपनी इच्छासे अपने हितके लिए मेहनत-मजदूरी करना अस्वीकार करें, और धनीलोग उनके लिए सुभीतेके नियम जबतक न बनावेंगे तबतक काम न करनेकी प्रतिज्ञा करें, तो उसे अन्याय नहीं कहा जासकता। लेकिन मजदूरोंका कर्तव्य है कि वे पहलेहीसे यथासमय पूँजी. वाले धनियों को अपने इरादेकी सूचना दे दें। किन्तु हड़ताल करनेके लिए अगर मजदूरों से कोई और मजदूरोंको डरा धमका कर उनसे काम बंद करावे, या काम बंद करवानेकी चेष्टा करे, तो उनका वह कार्य अनुचित ही कहना पड़ेगा। कारण, सभीको अपनी इच्छाके अनुसार काम करनेका आधकार है, आर जो आदमी भय दिखाकर उस अधिकारमें बाधा डालता है, उसका व, कार्य न्याय-संगत नहीं है।
एकहत्था व्यवसाय । मजदूरों के लिए जैसे अपने सुभीतेके वास्ते किसीको भी भय न दिखाकर अपनी अपनी इच्छाके अनुसार हड़ताल करना अन्याय नहीं है. वैसे ही धानयोंके लए अप लुभातेके वास्ते, असत् उपायको काममें न लाकर, अन्यको कोई खास