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ज्ञान और कर्म । [द्वितीय भाग ... ... ... ... ................. .wwwwwwwwwmummmm.nwww.www.www.v...... अवश्य वाध्य है, किन्तु पुत्र-कन्याके पालन-पोषणका भार उनके उत्पन्न होनेके पहले नहीं आपड़ता, और बाल-बच्चोंके जन्मकालमें देर करनेकी क्षमता खुद पिताके ही हाथमें है। अतएव जिसमें स्त्रीको खिलाने-पिलाने और पाल. नेकी क्षमता नहीं है उसे जब तक वह क्षमता न प्राप्त हो तब तक अवश्य ही विवाह नहीं करना चाहिए। किन्तु अन्य कारणसे विवाह विहित होने पर, केवल सन्तान पैदा होनेकी आशंकासे उसे रहित करनेका प्रयोजन नहीं देख पड़ता। कोई कोई कहते हैं, स्त्रीके रक्षणावेक्षणकी जिम्मेदारी और स्त्रीसंगकी लालसा जो है वह विवाहित पुरुषके विद्यालाभ या अर्थलाभके लिए यथेष्ट-विचरणमें बाधा डाल सकती है। किन्तु जो स्वामी हिन्द-परिवारके अन्र्तगत है उसे स्त्रीके रक्षणावेक्षणके लिए विशेष चिन्ता करनेका कोई कारण नहीं देख पड़ता । और, एकतरफ जैसे स्त्रीसंग-लाभकी लालसा अन्यत्र जानेमें बाधा डालनेवाली हो सकती है, वैसे ही दूसरी तरफ स्त्रीके सुखसन्तोषको बढ़ानेकी इच्छासे अपने कृती होनेकी चेष्टाको उत्साह भी मिलता है-यह सत्य है कि जिसे स्त्रीके और पुत्र-कन्या आदिके भरण-पोषणके लिए, चाहे जिस तरहसे हो, कुछ कमानेके लिए वाध्य होना पड़ता है, वह अपनी उन्नति करनेके लिए मनमाने तौरसे चेष्टा नहीं कर सकता। किन्तु उधर जिसके लिए अभाव-पूर्तिके वास्ते कमानेका विशेष प्रयोजन नहीं है, उस व्यक्तिमें भी अपनी उन्नतिके लिए अधिक चेष्टा करनेकी उत्तेजना पूर्णरूपसे नहीं रहती। इस सम्बन्धमें प्रसिद्ध-वक्ता और विचारक अस्किन साहबकी बात स्मरणीय है । स्त्री-पुत्र आदिके पालनका कोई उपाय न देखकर अर्किन साहब बैरिस्टरी करने लगे । पहलेपहल जो मुकदमा उन्होंने अपने हाथमें लिया, उसमें जब वह वक्तृता देने लगे, तब बीचमें प्रधान विचारपति मैन्सफील्डने यह कहकर कि उनका अमुक विषय अप्रासंगिक है, उन्हें उसका उल्लेख न करनेके लिए इशारा किया । मगर उक्त बैरिस्टरने उस इशारकी पर्वा न करके तेजीके साथ उसी विषयको उठाकर खूब बहस की। उनकी वह वक्तता इतनी जोरदार और हृदय पर असर डालनेवाली हुई कि उसी दिनसे उन्होंने अपने रोजगारमें असाधारण प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली। वक्तृता दे चुकनेके बाद बैरिस्टरसाहबके एक मित्रने उनसे पूछा कि मैन्सफील्ड जैसे प्रबल प्रतापी प्रधानविचारपतिकी आज्ञाको न,