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ज्ञान और कर्म।
- [प्रथम भाग
नहीं है कि राजशासनके द्वारा उसे रोकना उचित समझा जाय । वे कहते हैं. खाने-पीनेके बारेमें लोगोंकी स्वाधीनताके ऊपर हस्तक्षेप करना अन्याय है। वे यह भी कहते हैं कि लोगोंकी मादक-सेवनप्रवृति इतनी प्रबल है कि उसे राजशासनके द्वारा बंद करनेकी चेष्टा किसी तरह भी सफल नहीं हो सकती। इसलिए उनके मतमें मादक पदार्थ तैयार करनेपर और उसकी 'खरीद फरोख्त' के ऊपर 'कर' बाँधकर उसका मूल्य बढ़ा दो। बस, इस तरह उसके बननेको और इस्तेमालको अनुशासित करके जहाँतक उसका चलन रोका जा सकता है रोको। इससे अधिक चेष्टा करना वृथा है। किन्त मुझे ये सब बातें संपूर्णरूपसे अकाट्य नहीं जान पड़तीं।
अगर मादकपदार्थका सेवन गुरुतर दोषका कारण न हो तो राजशासनके द्वारा उसका प्रचार रोकनेकी चेष्टा वाञ्छनीय नहीं हो सकती। किन्तु मादक पदार्थके सेवनसे जो सब घोरतर अनिष्ट होते हैं उनपर दृष्टि डालनेसे यह बात किसी तरह नही कही जा सकती कि वह गुरुतर दोषका कारण नहीं है।
खाने-पीने और अन्य अनेक विषयोंके सम्बन्धमें लोगोंकी स्वाधीनतामें हस्तक्षेप करना अन्याय है, इसमें कोई सन्देह नहीं। मगर किसी तरहके बलप्रयोग द्वारा मादक पदार्थ सेवन करनेवालोंकी स्वाधीनताके ऊपर हस्तक्षेप करना, अत्यन्त प्रयोजनीय स्थलके सिवा अन्यत्र, कोई नहीं चाहता और न कोई उसका अनुमोदन ही करता है। तो भी मादक पदार्थको पैदा करना या बनाना और उसका क्रय-विक्रय, केवल कर लगाने और बढ़ानेके द्वारा अनुशासित न होना चाहिए, वह विष तैयार करने और बेचने-खरीदनेकी तरह, अधिकतर कठिन राजनियमके द्वारा रोका जाना चाहिए । कमसे कम ऐसा करना अत्यन्त वान्छनीय जान पड़ता है। केवल कर लादने या बढ़ानेसे एक तरफ दाम बढ़ जानेके कारण मादक द्रव्य गरीबोंके लिए कुछ दुर्लभ अवश्य हों जाते हैं, लोकन धनीके लिए इसका कुछ फल नहीं होता। और दूसरी तरफ सरकारी खजाना भरनेके लिए अनेक राजकर्मचारी मादक पदार्थको सर्वधारणके लिए सुलभ करनेका यत्न कर सकते हैं।
स्वाधीनताके ऊपर हस्तक्षेपके बारेमें और एक बात है। एककी स्वाधीनता जब दूसरेके लिए अनिष्टकर होती है तब उस स्वाधीनताके ऊपर हस्त