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ज्ञान और कर्म ।
[प्रथम भाग
__ कोई कोई कहते हैं, कुछ कड़े या कठोर हुए बिना, विद्यार्थीके मनमें थोड़ा भय पैदा किये बिना, विद्यार्थी कभी शिक्षकको नहीं मानेगा, और सुश्रृंखला के साथ शिक्षाका काम भी नहीं होगा। यह कोरा भ्रम है। शिक्षा और शासन अगर एक ही चीज होते तो यह बात ठीक होती। किन्तु शिक्षा और शासनमें बड़ा अंतर है। शासनका उद्देश्य यह है कि शासित आदमी, उसके हृदयमें चाहे जो हो, बाहर किसी खास कामको करे, या उससे निवृत्त हो। शिक्षाका उद्देश्य यह है कि शिक्षित आदमीके भीतरके दोषोंका संशोधन होकर उसे उत्कर्ष प्राप्त हो। सुतरां शासन जो है वह भय दिखाकर होता है और शिक्षा भक्ति उत्पन्न हुए विना सफल नहीं होती।
(२) बहुतसे विद्यार्थी एकत्र एक विषयको सीख सकें तो शिक्षाके कायमें जो श्रम और समय लगता है वह बहुत कुछ कम हो सकता है। एक शिक्षक एक श्रेणीके बीस-पचीस विद्यार्थियोंको एक साथ एक विषयकी शिक्षा अना. यास दे सकता है। इसी तरह अनेक शिक्षक एक जगह पर भिन्न भिन्न श्रेणीके छात्रोंको शिक्षा देते हैं तो एक ही जगहमें बहुत दूर तक शिक्षा दी जा सकती है। इसी लिए विद्यालय, अर्थात् एक जगह पर भिन्न भिन्न अनेक छात्रोंकी शिक्षाका स्थान, शिक्षाका एक उत्कृष्ट उपकरण (सामान) है। लेकिन अनेक विद्यार्थियोंको एकत्र शिक्षा देनेमें जैसे सुविधा है, वैसे ही असुविधा भी है। एक स्थानपर अनेक छात्रोंको बहुत देरतक रोक रखनेसे उन्हें शारीरिक कष्ट हो सकता है। एक दर्जेके सभी लड़कोंकी बुद्धि समान नहीं होती । कोई शीघ्र समझ लेता है, कोई देरमें समझता है, कोई एक विषयको सहजमें समझ जाता है, कोई दूसरे विषयको समझता है, कोई सर्वदा पढ़ने लिखने में मन लगाता है, कोई कभी कभी मन लगाता है और कभी कभी नहीं भी लगाता। इसके सिवाय भिन्न भिन्न श्रेणीके छात्रोंको शिक्षा देनेके लिए भिन्न भिन्न शिक्षकोंका प्रयोजन होता है, और उनके एकमत होकर काम करनेकी आवश्यकता हुआ करती है।
इस तरह भिन्न भिन्न प्रकृतिके और भिन्न भिन्न श्रेणीके छात्र तथा भिन्न भिन्न शिक्षक लेकर एक जगह पर बहुत अच्छी तरह काम चलानेके लिए विद्यालयके सम्बन्धमें कुछ नियम प्रयोजनीय हैं। जैसे
१ विद्यालयका घर स्वास्थ्यकर होना चाहिए।