________________
छठा अध्याय ]
ज्ञान-लाभके उपाय।
१२३
wwwwwwwwww
सभी स्थानोंका इतिहास, सब देशोंके राजाओंके नामोंकी सूची, छोटे-बड़े सब युद्धोंकी मिती और तारीख इत्यादि सूक्ष्म विषयोंकी जानकारी हासिल करना अधिकांश लोगोंके लिए अनावश्यक है। देहतत्त्व और मनोविज्ञान अर्थात् हमारी देह और मन स्थूल रूपसे कैसे हैं और मोटे तौरपर उनके कार्य किस नियमसे चलते हैं,इस विषयका कुछ ज्ञान सभीके लिए अत्यन्त प्रयोजनीय है, इस बातको विशेष रूपसे समझानेकी कोई आवश्यकता नहीं है। जड़विज्ञान और रसायनशास्र, अर्थात् जड़जगत्में माध्याकर्षण, ताप, बिजली, प्रकाश. और रासायनिक शक्तिकी क्रियाका कुछ ज्ञान रहे बिना संसारके नित्यकर्म नहीं चल सकते । मगर सभी विषयोंके सूक्ष्मतत्त्व जानना अनेक लोंगोके लिए सहज या संभव नहीं है। सबसे बढ़कर धर्मनीति और उसके विषयका कुछ ज्ञान सभीके लिए अत्यन्त आवश्यक है। ईश्वरको माननेवालोंकी तो कोई बात ही नहीं, निरीश्वरवादियोंके सम्बन्धमें भी यह बात समानरूपसे लागू है। कारण, न्यायपरायण होनेकी आवश्यकतामें सबका मत एक है और न्यायपरायण होनेके लिए, चाहे जिस तरह हो, धर्मनीतिकी चर्चाका प्रयोजन है। जो लोग ईश्वरको मानते हैं उनकी दृष्टिमें क्या पारिवारिक नीति, क्या राजनीति, सभी नीतियोंका मूल धर्मनीति अर्थात् विश्वनियन्ताका नियम है। पर जो ईश्वरको नहीं मानते उनकी दृष्टिमें धर्मनीति अर्थात् ईश्वरका नियम सब नीतियोंका मूल नहीं है । वे पारिवारिक धर्म, सामाजिक धर्म, राजधर्म आदिको अपने अपने विषयकी नीतिका मूल मानते हैं। किन्तु सभीको सभी विषयों में न्यायमार्गका अनुसरण करना चाहिए । इसीलिए नीतिविषयक कुछ. ज्ञान सभीके लिए प्रयोजनीय है।
कोई कोई यह आपत्ति कर सकते हैं कि ऊपर जितने विषयोंका उल्लेख किया गया, उन्हें अच्छी तरह जानना अनेकोंके लिए संभवपर नहीं है, और किसी विषयको अगर अच्छी तरह न जाना, तो उसे न जानना ही अच्छा, और अनेक विषयोंको थोड़ा थोड़ा जाननेकी अपेक्षा थोड़ेसे विषयोंको अच्छी तरह जानना अच्छा है। ऐसी आपत्ति कुछ ठीक है, लेकिन संपूर्ण संगत नहीं है। ऊपर जिन विषयोंका उल्लेख हुआ है उन सबको संपूर्ण रूपसे जानना या अच्छी तरह जानना, साधारण लोगोंकी कौन कहे, असाधारण बुद्धिमान् पुरुषके लिए भी संभव नहीं है। किन्तु यह कोई अस्वीकार नहीं कर सकता कि उन सभी विषयों.